अब फर्जी बिल बनाने वाले कम्पनियां टैक्स डिपार्टमेंट के रडार पर

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नई दिल्ली : नोटबंदी के दौरान के संदिग्ध कैश डिपॉजिट की तहकीकात करने और बेनामी प्रॉपर्टी से जुड़े छापे मारने के बाद टैक्स अधिकारी अब ऐसी कंपनियों के पीछे लग गए हैं, जो दूसरी कंपनियों को फर्जी बिल मुहैया कराती हैं।
मामले की जानकारी रखने वाले एक शख्स ने बताया कि टैक्स अधिकारियों की नजर में नई दिल्ली और मुंबई की ऐसी कंपनियां आई हैं, जिन्होंने ब्लैक मनी बनाने में मदद करने के लिए फर्जी बिल मुहैया कराए थे। पिछले दो महीनों में अधिकारियों ने इन कंपनियों या एंट्री आॅपरेटरों से पूछताछ की है।
बिग डेटा एनालिटिक्स में कुछ कंपनियों के इनवॉइसेज पर सवाल उठने के बाद टैक्स डिपार्टमेंट को शक हुआ। इस डेटा एनालिटिक्स टूल का इस्तेमाल विभाग ने बैंक खातों, फोन रिकॉर्ड्स, क्रेडिट कार्ड, पैन, टैक्स रिटर्न की डिटेल्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स सहित तमाम आंकड़ों को खंगालने में हाल में शुरू किया था।
इस दौरान पाया गया कि कुछ कंपनियां विभिन्न सेक्टरों में कई तरह के माल और सेवाएं दे रही हैं। शक होने पर टैक्स अधिकारियों ने उन फर्मों पर जाकर जांच की और पाया कि वे तो असल कंपनियों को फर्जी बिल देने वाले आॅपरेटर्स थे।
इसमें गोरखधंधा इस तरह होता है। कारोबारी इन आॅपरेटरों को चेक देता है। कंपनी की बुक पर आॅपरेटर को सप्लायर के रूप में दर्ज किया जाता है। आॅपरेटर इसके बाद एक फर्जी बिल (फर्जी सामान या फर्जी सेवाएं देने के लिए) जारी करता है और अपना 2 पर्सेंट कमीशन काटकर कारोबारी को बाकी रकम कैश में लौटा देता है। सूत्र ने बताया कि पिछले कुछ महीनों में एक बड़े एंट्री आॅपरेटर को दबोचा गया, जिस पर पिछले कुछ वर्षों में कई कंपनियों को फर्जी बिलों के जरिए लगभग 1000 करोड़ रुपये की ब्लैक मनी पैदा करने में मदद देने का शक है। एक टैक्स अधिकारी ने को बताया, श्हमारे पास इतना ज्यादा डेटा आ रहा है, उसकी एक बार में जांच करना संभव नहीं है। आने वाले दिनों में ऐसे कई मामलों की जांच होगी।
सूत्र ने बताया कि टैक्स विभाग ने ऐसी कंपनियों और कारोबारियों से भी पूछताछ शुरू कर दी है, जिन्होंने एंट्री आॅपरेटरों के जरिए कैश जेनरेट किया है। एक टैक्स एडवाइजर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, मेरे क्लाइंट ने ऐसे ही एक बिल के जरिए करीब 6 करोड़ रुपये का कैश जेनरेट किया था। अब टैक्स विभाग उनसे पूछताछ कर रहा है। अगर टैक्स, ब्याज और जुमार्ने को जोड़कर देखें तो उन्हें टैक्स विभाग को करीब 6 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। नांगिया एंड कंपनी एलएलपी के मैनेजिंग पार्टनर राकेश नांगिया ने कहा, डेटा एनालिटिक्स से फर्जी बिल पकड़ में आ जाते हैं और ऐसे या इससे मिलते-जुलते ट्रांजैक्शंस के बारे में सुराग भी मिल जाता है। जीएसटी रिजीम में ऐसी सभी सूचनाएं मिल सकती हैं क्योंकि टैक्स अधिकारियों के पास ऐसे बिलों और इन्हें मुहैया कराने वाली कंपनियों की जांच करने के लिए बहुत आंकड़े होंगे।

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