कानपुर। बीते वर्ष एक जुलाई से जीएसटी लागू हुआ था। जनवरी 2018 की शुरूआत में सीजीएसटी अफसरों की नजर में 46 ऐसी कंपनियां आईं जिनका आइटीसी क्लेम गलत लग रहा था। अधिकारियों की टीम लगाकर इन कंपनियों के कागजात और 89.61 करोड़ रुपये की आइटीसी जांची गई। मांगने पर 33 कंपनियों ने ही कागजात दिए। इनकी जांच पूरी हो गई है। इनकी 46.16 करोड़ की आइटीसी सही मिली लेकिनए इन्होंने 13 करोड़ की आइटीसी गलत तरीके से ली है। इन कंपनियों ने गड़बड़ी स्वीकार की है। इनके अब तक 52 लाख रुपये जमा हो चुके हैं। बाकी के लिए चालान तैयार हो रहे हैं। 13 कंपनियों पर आइटीसी की वैल्यू 33 करोड़ रुपये बन रही है। इन्हें सीजीएसटी ने संदेहास्पद सूची में डाल कर नोटिस जारी कर दिया है।
तीन स्तर पर कागजात चेक हुए। जीएसटी लागू होने के पहले के छह माह के रिटर्न। चाहे वे वैटए सर्विस टैक्सए एक्साइज किसी में भी क्यों न हों। ये रिटर्न जरूरी थे। बिना रिटर्न आइटीसी क्लेम नहीं की जा सकती थी। रिटर्न ठीक तरीके से फाइल किए या नहींए इसकी भी जांच हुई। जिन इनवाइस के आधार पर आइटीसी क्लेम की गई वे मान्य हैं या नहीं यह भी देखा गया। बैलेंसशीट चेक की गई कि इनवाइस और बैलेंसशीट के आंकड़ों में कहीं अंतर तो नहीं है।
इन कंपनियों ने सेस की भी आइटीसी ले ली थी जबकि नियमानुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। झांसी की एक कंपनी में गड़बड़ी पकड़ी गई। उसका आफिस हैदराबाद में भी है। अफसरों ने हैदराबाद सीजीएसटी कार्यालय को पत्र लिख वहां की कंपनी पर कार्रवाई की बात कही है। कंपनियां प्लास्टिक, स्टील, सर्विस प्रोवाइडर, केमिकलए, प्रोसेसिंग यूनिट आदि इन उत्पादों की है। नोडल अधिकारी सीजीएसटी चंचल तिवारी ने बताया जिन 13 कंपनियों ने कागजात नहीं दिखा हैं उन्हें एक और मौका दिया गया है। तय समय में कागजात न दिखाए तो आइटीसी निरस्त कर वसूली होगी।
जीएसटी के ई-वे बिल का पोर्टल बैठते ही प्रदेश में अभूतपूर्व स्थिति आ गई है। जीएसटी लागू होने से पहले भी वैट में माल को इधर से भेजने के लिए फॉर्म-38 जरूरी होता था। जीएसटी लागू होने के बाद जब कई राज्य एक फरवरी से नेशनल ई-वे बिल लागू होने का इंतजार कर रहे थेए तब यहां प्रदेश में वाणिज्य कर विभाग ने अपने ई-वे बिल की व्यवस्था शुरू कर दी थी। एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद 15 अगस्त तक डेढ़ महीने के लिए ही प्रदेश में इसकी छूट थी लेकिन जीएसटी की नई व्यवस्था में यह सामान्य बात थी। 16 अगस्त से प्रदेश ने ई-वे बिल की अपनी आॅनलाइन व्यवस्था कर दी थी लेकिन व्यापारियों के लिए यह अपरिचित थी।
इसी वजह से कुछ जगहों पर कारोबारियों ने ई-वे बिल को नजरअंदाज किया तो कुछ जगहों पर उनसे इसे बनाने में चूक भी हुई लेकिन वाणिज्य कर अधिकारियों ने दोनों तरह के मामलों में जमकर कार्रवाई की और खूब जुमार्ना वसूला। प्रदेश के ई-वे बिल के साथ व्यापारियों का यह अनुभव ही नेशनल ई-वे बिल के उनके विरोध का कारण बन गया। देश भर में लागू व्यवस्था से वह दूर नहीं रह सकते थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकार करने का मन बनाया लेकिन ऐन मौके पर जब ई-वे बिल पोर्टल क्रैश कर गया तो व्यापारियों की पौ बारह हो गई।
उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष बनवारीलाल कंछल कहते हैं कि ई-वे बिल का पोर्टल ठप होने से कारोबारियों को इसे सीखने का मौका मिल गया है। कंछल के मुताबिक ई-वे बिल की प्रक्रिया जटिल है इसलिए इस मौके का इस्तेमाल कर ई-वे बिल को और सरल बनाया जाना चाहिए।
कंछल ने व्यापारियों की तरफ से सरकार से छह महीने तक ई-वे बिल को स्थगित करने की मांग की है।
ई-वे बिल स्थगित होते ही प्रदेश के वाणिज्य कर विभाग के अधिकारियों की चिंता गहरा गई है। मुख्यालय से लेकर शासन तक में मंथन का दौर जारी रहा कि ऐसे में नंबर दो के माल का परिवहन रोकने के लिए क्या किया जाए। जीएसटी के एडीशनल कमिश्नर विवेक कुमार ने बताया कि टैैक्स की चोरी रोकने के लिए बिल कलेक्ट करने और उचित डाक्यूमेंट की जांच करने के लिए प्रवर्तन कार्य शुरू कर दिए गए हैैं।