नई दिल्ली : यूरोपीय यूनियन के साथ फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत में भारत वाइन और स्पिरिट के साथ-साथ ऑटो कंपोनेंट्स पर लचीला रवैया अपना सकता है। इन मसलों पर भारत के सख्त रवैये रवैये के कारण दो साल पहले बातचीत अटक गई थी। 28 देशों का समूह यूरोपीय यूनियन अब फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर फिर से बातचीत शुरू करना चाहते हैं। एफटीए पर बातचीत 2007 में शुरू हुई थी और अप्रैल 2013 में यह मामला अटक गया था।
भारत का मानना है कि संसद में इंश्योरेंस सेक्टर में एफडीआई सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी करने की मंजूरी मिल गई है, लिहाजा अब वह ट्रेड समझौते पर बातचीत को लेकर ज्यादा मजबूत स्थिति में है। इंश्योरेंस में एफडीआई सीमा में बढ़ोतरी यूरोपीय यूनियन की अहम मांग थी। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘यूरोपीय यूनियन के अलग-अलग देशों ने कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर से एफडीए पर बातचीत फिर से शुरू करने को कहा है, लेकिन हम उनकी तरफ से औपचारिक प्रस्ताव का इंतजार कर रहे हैं। अप्रैल 2013 से अब हमारी पोजीशन में थोड़ा बदलाव आया है। हम वाइन और स्पिरिट पर अपना रुख नरम कर सकते हैं, क्योंकि हमारे देश की कई ब्रुवरीज को ब्रिटेन या फ्रांस ने खरीद लिया है।’
पिछले साल ब्रिटेन की शराब कंपनी डियाजियो ने बेंगलुरु की यूनाइटेड स्पिरिट्स में 54.78 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। डियाजियो दुनिया की सबसे बड़ी शराब कंपनी है। वाइन और स्पिरिट पर कस्टम ड्यूटी 150 फीसदी है, जिसे यूरोपीय यूनियन 5 साल में खत्म करवाना चाहता है।
वाइन के लिए डिफरेंशियल ड्यूटी
भारत लो कॉस्ट वाइंस पर हाई ड्यूटी और महंगी क्वॉलिटी की वाइन पर लोअर टैरिफ का प्रस्ताव कर सकता है। व्हिस्की के मामले में भारत लोअर ड्यूटी का प्रस्ताव कर सकता है, बशर्ते इसकी बॉटलिंग भारत में हो रही हो।
भारत और यूरोपीय यूनियन के बीच इनवेस्टमेंट एंड ट्रेड एग्रीमेंट (बीआईटीए) पर बातचीत 2007 में शुरू हुई थी। अप्रैल 2013 तक दोनों पक्षों के बीच 15 दौर की बातचीत हुई थी। उसके बाद भारत ने कहा कि जिन चीजों पर सहमति हो चुकी है, उन पर समझौता कर अटके पड़े मामलों पर बातचीत को आगे बढ़ाया जाए। हालांकि, यूरोपीय यूनियन एक साथ पूरा समझौता चाहता था। अधिकारी ने बताया, ‘यूरोपीय यूनियन की भारत के इस प्रस्ताव में दिलचस्पी नहीं थी।’
ऑटो कंपोनेंट्स पर लोअर ड्यूटी
भारत हाई-टेक ऑटो कंपोनेंट्स पर ड्यूटी घटाने पर सहमत हो सकता है। इससे भारतीय कंपनियों और ग्राहकों के लिए इंपोर्ट कॉस्ट कम हो सकती है और डोमेस्टिक इंडस्ट्री को भी नुकसान नहीं होगा। अधिकारी ने बताया, ‘ऑटो सेक्टर को जरूरत से ज्यादा सुरक्षा मिली हुई है। हमें धीरे-धीरे इसमें ढील देनी होगी, जो आम आदमी के लिए बेहतर होगा। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो ये प्रॉडक्ट्स हमारे लिए हमेशा महंगे बने रहेंगे। डोमेस्टिक इंडस्ट्री की मदद के लिए लो टेक कंपोनेंट्स पर टैरिफ ज्यादा रखा जा सकता है।
स्रोत : इकोनॉमिक टाइम्स