यहां अंधा कानून है।

Image result for DELHI CUSTOMआज भी कस्टम अंग्रेजो के बनाये सिस्टम से चल रहा है। अफसरों की तानाशाही और सीबीआईसी के बनाये कानूनों की धच्चियां उड़ाई जाती है। इसमें चाहे अफसरों की ट्रांस्फर-पोस्टिंग हो या कस्टम ड्यूटी की वेल्यू हो कोई कानून नहीं है। कस्टम डिपार्टमेंट को बने लगभग 75 साल हो गये है कस्टम डिपार्टमेंट (जनवरी 1944) डीआरआई (1953) डीजीसीईआई (1979) इतने सालों मे सारा सिस्टम बदल गया मगर अंग्रेजों के बनाये कानून नहीं बदले।
आज से 16 साल पहले भी हमने यह मुद्दा उठाया था कि दिल्ली के बजाये दूसरे ‘सी’ पोर्ट तथा ड्राई पोर्ट पर वेल्यू का फर्क क्यों होता है? दिल्ली के इम्पोर्टर मुंबई, कोलकता, चैन्नई, न्हावा शिवा, तथा मुद्रा पोर्ट पर जाकर माल क्लीयर क्यों करवाते है। जबकि एशिया का सबसे बड़ा पोर्ट तथा अन्य कई बड़े ड्राई पोर्ट दिल्ली-एनसीआर में ही है।
क्यों नहीं न्हावा शिवा पोर्ट, कोलकता, चैन्नई पर सख़्त अफसर लगाये जाते है। आईसीडी तुगलकाबाद के राजेश नंदन श्रीवास्तव को न्हावा शिवा पोर्ट पर क्यों नहीं लगाया जाता बी. बी. गुप्ता जैसे अफसर को क्यों नहीं लगाया मुंद्रा पोर्ट पर। इसका कारण कही यह तो नहीं कि दिल्ली वालों को जानकर वहां भगाया जाता है। सख़्ती करके की गलत काम करने वाले उस पोर्ट पर जाए और माल कमाने वाले अफसर भी न्हावा शिवा तथा कोलकता जाकर भ्रष्टाचार करके करोड़ों कमाये।
दिल्ली के बाहर 10 पोर्ट ऐसे है जहां रिश्वत ही अरबों में इकट्ठी होती है। एक इंस्पेक्टर तक के हिस्से में 6 महीने में 35 लाख रुपए आते है। इंस्पेक्टर लगते ही मुंह पर रिश्वत का खून लगा दिया जाता है। ट्रांस्फर-पोस्टिंग का माफिया सक्रिय हो जाता है।
स्मगलर कम क्लीयर एजेंटों को धंधा चमकने लगता है। सरकार अपने बनाये ट्रांस्फर-पोस्टिंग के कानूनों की खुद धच्चियां उड़ाती है। प्रिंसिपल कमिश्नरों की जगह कमिश्नर लगाऐं जाते है। जब खुद कानून का पालन नहीं कर सकते तो बनाये ही क्यों जाते है। डीआरआई की सिर्फ 700 अफसरों की फौज और क्लर्क मिलाकर पूरे देश में स्मगलिंग कैसे रोक सकती है।
भ्रष्ट अफसरों को डीआरआई में क्यों लगाया जाता है। बड़े अफसरों और मेंबरों से पूछो की डीआरआई में अफसरों की कमी क्यों है तो उनका जवाब है कि डीआरआई में कोई जाना ही नहीं चाहता यह जवाब बिल्कुल गलत है। ईमानदार और कर्मयोगी अफसरों को जब तक बुलाकर पोस्टिंग नहीं दी जाएगी तब तक वह कभी भी डीआरआई जाना नहीं चाहेगा।
हमने इस बारे में कितने ही अफसरों से बात की जो कुछ करना चाहते है देश के लिए उनका यही जवाब था कि हमें डिपार्टमेंट खुद बुलाकर पोस्टिंग करे हम जाने को तैयार है। दूसरी बात जब माल की इंपोर्ट-एक्सपोर्ट होने से पहले हर तरह की जांच हो जाती है।
तो वहीं अफसर जब इंपोर्ट या एक्सपोर्ट में होता है तो जिस वेल्यू पर वह साईन करता है मगर जब वही अफसर जब डीआरआई, प्रिवेंटिव तथा एसआईआईबी में होता है तो उसी वेल्यू के माल को पकड़ लिया जाता है ऐसे हजारों किस्सें है यह तानाशाही नहीं हुई तो और क्या हुआ। एक केस में सेम आरोपी को छोड़ दिया जाता है और एक केस में सेम आरोपी पर पेनल्टी लगा दी जाती है क्यों?
देश के कई स्मगलरों पर कोफोपोसा लगना चाहिए मगर वह पोर्ट बदल-बदल कर स्मगलिंग कर रहे है विजिलेंस डिपार्टमेंट के पता होने के बाद भी। भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा जाता?
आज जीएसटी की चोरी धड़ल्ले से की जा रही है मगर अफसरों की मौज ही मौज है इसका पूरा विवरण हम अगलें अंक में लिखेंगे। सरकार नींद से जागे भ्रष्ट अफसरों तथा स्मगलरों पर शिकंजा कसे। नहीं तो काला धन इतना इकट्ठा हो जाएगा की मोदी जी को एक और नोट बंदी करनी पड जायेगी। जिससे मोदी जी का भष्टाचार मुक्त भारत बनाने का सपना धरा का धरा रह जाएगा।

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