पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी की जल्दी संभावना नहीं, केंद्र और राज्यों को लगता है कमाई कम होने का डर

नई दिल्ली: पेट्रोल और डीजल को निकट भविष्य में माल एवं सेवाकर (जीएसटी) के दायरे में लाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है. इसकी प्रमुख वजह राज्य और केंद्र सरकारों का इसके पक्ष में नहीं होना है क्योंकि उन्हें राजस्व नुकसान होने का डर है.

एक शीर्ष सूत्र ने यह जानकारी दी. पिछले साल जब जुलाई में जीएसटी को लागू किया गया था तब पांच पेट्रो उत्पादों को इसके दायरे से बाहर रखा गया था. यह उत्पाद पेट्रोल, डीजल, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और विमान ईंधन (एटीएफ) हैं.

यद्यपि पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी सहित कुछ अन्य मंत्रियों और उद्योग जगत के लोगों की बीच इस बात की चर्चा रही कि इन्हें जीएसटी के दायरे में लाया जाए ताकि कीमतों में उतार-चढ़ाव से निपटा जा सके.

प्रतीकात्मक फोटो.

पेट्रोल, डीजल पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगा तो वैट भी लगेगा

नाम ना बताने की शर्त पर सूत्र ने बताया कि हालांकि इन्हें जीएसटी में शामिल करने की तत्काल कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय ने इस संबंध में कोई प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ाया है. लेकिन मीडिया रपटों के आधार पर चार अगस्त को जीएसटी परिषद की पिछली बैठक में इस पर चर्चा हुई थी. सभी राज्यों ने इसका विरोध किया था.

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इससे पहले जून महीने में बताया गया था कि पेट्रोल और डीजल को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत लाने की स्थिति में इस पर 28 प्रतिशत की उच्चतम दर के साथ साथ राज्यों की तरफ से कुछ स्थानीय बिक्रीकर या मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाया जा सकता है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि दोनों ईंधनों को जीएसटी के दायरे में लाने से पहले केंद्र को यह भी सोचना होगा कि क्या वह इन पर इन-पुट कर क्रेडिट (उत्पादन के साधन पर जमा कर) का लाभ न देने से हो रहे 20,000 करोड़ रुपये के राजस्व लाभ को छोड़ने को तैयार है. पेट्रोल , डीजल , प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल को माल एवं सेवा कर व्यवस्था से बाहर रखने की वजह से इन पर इन पुट कर का क्रेडिट नहीं मिलता है.

सौजन्य से: इंडिया

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