दिल्ली आईसीडी तुगलकाबाद एक्सपोर्ट में लाईसेंस बेचने में भारी घोटाला, सरकार को करोड़ों का चूना, आरोपी फरार

पिछले कई सालों से अफसरों की मिलीभगत से हो रहा था यह काम

नई दिल्ली : दिल्ली आईसीडी तुगलकाबाद में यह हो नहीं सकता कि यह चर्चा में आने से रह जाये। हर समय यहां कुछ न कुछ गलत होता रहता है। जैसे कि अण्डर-वैल्यू, मिस-डिक्लरेशन, बैन आइटमों का इम्पोर्ट, ड्रॉ-बैक घोटाला, कंटेनरों से माल गायब करना, चंदन तस्करी आदि हर समय तस्करों की नजर यहां गलत काम करने में लगी रहती है।
दो बातें यहां लिखना बेहद जरुरी है कुछ प्रतिशत गलत काम अफसरों की नजर में होता है कुछ प्रतिशत काम छुपकर किया जाता है। इसी तरह कुछ प्रतिशत गलत काम क्लीरिंग एजेंटों की नॉलेज में होता है कुछ प्रतिशत काम उनको भी नहीं पता होता। लोग कहते कुछ है और होता कुछ है। सीएचए को भी चकमा दे दिया जाता है। हमारे देश में कानून भी डबल चूड़ी वाले नट की तरह है चाहे गलत काम में इस्तेमाल कर लो चाहे गलत काम को पकड़ने में इस्तेमाल करो, यह तो करने वाले पर निर्भर करता है। उसी कानून के दायरे में पकड़े जाते है उसी कानून की आड़ में छूट जाते है। गलत इम्पोर्ट करने वाले भी उन क्लीरिंग एजेंटों को इस्तेमाल करते है जो गलत काम करने को हमेशा तैयार रहते है। जल्दी-जल्दी करोड़पति बनना चहते है क्योंकि गलत काम में अनाप-शनाप पैसा मिलता है।
इन बदनाम क्लीरिंग एजेंटों को लगभग सभी अफसर और लोग जानते है चाहे यह एयर-पोर्ट में काम करते है या सी-पोर्ट में। इन पर मोहर लगी है कि यह गलत काम करने वाले सीएचए है।
अभी आईसीडी तुगलकाबाद में एक नया स्कैम सामने आया है लाईसेंस बेचने का। सरकार एक स्कीम के तहत एक्सपोर्ट करने वाले लोग जो ड्रॉ-बैक नहीं लेते उनको उतने पैसे का लाईसेंस दे दिया जाता है, जिससे माल इम्पोर्ट करने पर उतने पैसे इस लाईसेंस से कट जाते है। यह लाईसेंस डीजीएफटी द्वारा दिया जाता है।
सूत्रा बताते है कि शराफत नाम का एक व्यक्ति यह लाईसेंस पेपर इम्पोर्ट करने वालों को बेचता था पांच लाख का लाईसेंस 50 लाख का बना कर, लाईसेंस की वैल्यू कंप्यूटर में चढ़ाते वक्त एक जीरों बढ़ा दी जाती थी, इस तरह से 5 लाख का यह लाईसेंस 50 लाख का हो जाता था।
इस तरह से पेपर इम्पोर्टर इस लाईसेंस के तहत अपनी ड्यूटी जमा करवा देते थे। अभी हाल ही में इस स्कैम पर पर्दा हटा तो जांच हुई तो पता चला कि यह काम कई सालों से हो रहा था अफसरों की मिलीभगत से।
सूत्रा बताते है कि इस केस में विनोद नाम का एक डेलीवेजर फरार है जिनकी मिलीभगत से यह काम हो रहा था। सूत्रों के अनुसार कमिश्नर आईसीडी एक्सपोर्ट ने उन सभी लोगों के कंटेनरों को रोक दिया जिन्होंने इस लाईसेंस के तहत ड्यूटी जमा करवाई थी। पेपर मार्किट में इस कार्रवाई से हा- हाकार मच गया है। पेपर इम्पोर्टर रोज आईसीडी में कमिश्नर से यह पूछ रहे है कि हमारी गलती कहां थी। मगर अफसरों का कहना है कि यह सब इम्पोर्टरों की नॉलेज में था क्योंकि शराफत नाम का व्यक्ति इनको सस्ते में लाईसेंस बेचता था। अगर इम्पोर्टरों की मानें तो वह कहते है कि हम पूरी वेल्यू पर लाईसेंस के पैसे देते थे चाहे डिपार्टमेंट जांच करा ले।
सूत्रों के अनुसार सीएचए द्वारा 1.25 करोड़ का ड्राफ्ट दे दिया गया है। अभी अफसरों के अनुसार 2014 से जो रकम निकली है वह 8 करोड़ के करीब है। अभी बाकी पैसे वसूले जाने की कोशिश जारी है। इस पूरे एपीसोड में कई प्रश्न सामने आने है? जिनका जवाब डिपार्टमेंट से पूछा जा सकता है और इम्पोर्टरों से भी पूछा जा सकता है। अगर इस पूरे स्केम की सीबीआई जांच करें तो कई करोड़ों का घोटाला निकल सकता है। कस्टम अपने अफसरों को बचाने की तैयारी में है कि किसी तरह पैसा वसूल कर इस केस को यहीं बंद कर दिया जाये। एक्सपोर्ट कमिश्नर का तबादला होने का प्रभाव भी इस केस पर पूरा पड़ेगा। ट्रांसफर हुआ अफसर इस केस से बचने की कोशिश करेगा। बाकी कमिश्नर एक्सपोर्ट को बदलने का राज क्या है यह तो सरकार या वो लोग बता सकते है जिन्होंने साम-दाम- दण्ड-भेद लगाया। मगर कारण क्या है यह शायद रहस्य ही रहेगा।
सूत्रों की माने तो पहले कस्टम 2014 तक का रिकार्ड निकाल रही थी मगर अभी ओर पुराना रिकार्ड निकाल रही है। कस्टम जांच करना चाहता है कि यह फ्रॉड कब से शुरु हुआ है। इम्पोर्टरों ने अभी तक शराफत नाम के व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कराई है। ऐसा क्यों? जबकि इनके साथ धोखाधड़ी हुई है। कहीं न कहीं दाल कुछ काला है, सामने आना चाहिए।

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