जालंधर : 60 रुपए किलो वाली चीज का 300 रुपए किलो तक का बिल बनाकर सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाने वाले दुबई मार्का एक्सपोर्टर्ज अब जी.एस.टी लागू होने के बाद चाहे छटपटा रहे हैं परंतु ऐसे फर्जी एक्सपोर्टर्ज द्वारा पिछले सालों दौरान किए गए कारनामे उनका पीछा नहीं छोड़ रहे। इनके कांडों के अलावा जालंधर जैसे शहर में जाली बिलों के नाम पर अरबों रुपए की सेल करने के कारनामे भी पिछले समय दौरान काफी प्रसिद्ध रहे जिनके तहत करोड़ों रुपए का वैट रिफंड सरकार से ले लिया गया। वैट रिफंड जैसा ही घोटाला केन्द्र सरकार की एजैंसी सैंट्रल एक्साइज में भी हुआ जिसके कारनामे अब धीरे.धीरे बाहर आ रहे हैं।
आज से कुछ साल पहले शहर में यह कांड काफी प्रसिद्ध हुआ था। तब आरोप लगे थे कि एक उद्योगपति ने डेढ़.दो साल में करीब 300 करोड़ रुपए की सेल कागजों में दिखा दी।
उस उद्योगपति ने बीड़ी सिगरेट से लेकर हैंड टूल्स और स्कैफ फोल्डिंग जैसी आइटमों के भी बिल काट दिए। तब इस उद्योगपति ने सैंट्रल एक्साइज लगाकर करोड़ों रुपए के बिल शहर के नामी उद्योगपतियों और एक्सपोर्टर्ज को दे दिए।
उन्हीं दिनों कई दुबई मार्का एक्सपोर्टर्ज फर्जी एक्सपोर्ट के कारण डीआरआई के हत्थे चढ़ गए। डीआरआई ने जाली बिल काटने वाले इस उद्योगपति को भी धर लिया। तब बीच.बचाव करवाकर इस उद्योगपति को कुछ समय के लिए बचा तो लिया गया परंतु अब इस कांड की परतें दोबारा खुलनी शुरू हो गई हैं क्योंकि एक्साइज विभाग पर आरोप लग रहा है कि उसने 300 करोड़ के जाली बिलों का स्कैंडल पता लगने के बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं की और विभाग सिर्फ नोटिस निकालने तक सीमित रहा।
आरोप तो यह भी है कि इन जाली बिलों के आधार पर करीब 37 करोड़ रुपए का सैंट्रल एक्साइज रिफंड भी जारी हो गया। कई सालों से यह मामला एक्साइज विभाग की फाइलों में दबा हुआ है
जिसकी यदि सीबीआई जैसी एजैंसी से जांच करवाई जाए तो लापरवाही बरतने या मिलीभगत करने वाले सैंट्रल एजैंसी के कई अधिकारी व कर्मचारी काबू आ सकते हैं। पता चला है कि
जिन उद्योगपतियों व निर्यातकों को सैंट्रल एक्साइज ने जाली रिफंड या जाली बिलों के आरोप में नोटिस निकाले थेए उनसे पैसे वसूलने हेतु विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई उलटा उन्हें नोटिस निकालने के बाद भी रिफंड जारी होते रहे।
लिखकर भी दे चुका है उद्योगपति
कुछ साल पहले जब एक मामूली से उद्योगपति ने जाली बिल के आधार पर 300 करोड़ रुपए की सेल कर ली तो सरकारी विभागों को संदेह हुआ जिसके बाद डीआरआई ने इस पर छापेमारी करके उसे उठा लिया।
तब इस शख्स ने विभाग को लिखकर भी दिया कि उसे फर्जी शिपमैंट हेतु बिल काटने के अतिरिक्त पैसे मिला करते थे। तब इस उद्योगपति ने इस स्कैंडल के बारे काफी कुछ साफ-साफ लिखकर दिया परंतु उसके आधार पर अभी तक कोई कार्रवाई सिरे नहीं चढ़ी। कार्रवाई न होती देख अब विभागीय अधिकारियों के खिलाफ उच्च स्तर पर शिकायत देने की तैयारी की जा रही है।
सिर्फ कागजों में ही 300 करोड़ रुपए की सेल दिखाने वाले इस कांड की जांच अगर निष्पक्षता से की जाए तो
जाली बिल लेने वाले कई उद्योगपति और निर्यातक भी फंस सकते हैं।
जाली बिल काटने वाले उद्योगपति ने मैन्यूफैक्चरिंग आइटमों के करोड़ों रुपए के बिल काटे परंतु
यदि उसकी छोटी-सी फैक्टरी का बिजली का बिल देखा जाए तो वह हजारों में मिलेगा जिससे साफ पता चलता है कि फर्जी बिल काटे गए।
इसकी फर्म का वेतन रिकार्ड भी स्थिति को स्पष्ट कर सकता है।