ज्यादा ज्वैलर्स को मिलेगी उत्पाद शुल्क से छूट

नई दिल्ली : ज्वैलरी को उत्पाद शुल्क के दायरे में लाने का विरोध कर रहे ज्वैलर्स को मोदी सरकार ने बड़ी राहत दी है। अब गत वर्ष 15 करोड़ रुपये से कम का कारोबार करने वाले ज्वैलर्स को उत्पाद शुल्क के लिए पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पहले यह सीमा 12 करोड़ रुपये थी। साथ ही चालू वित्त वर्ष में 10 करोड़ रुपये से कम का कारोबार रहने तक ज्वैलर्स को उत्पाद शुल्क से छूट रहेगी। सरकार ने यह भी साफ किया है कि जॉब वर्कर (ज्वैलरी के कारीगरों) के यहां न तो उत्पाद शुल्क के अधिकारी छापेमारी नहीं करेंगे।
इसके अलावा सेंपल के तौर पर ज्वैलरी एक जगह से दूसरी जगह भेजने पर कोई उत्पाद शुल्क नहीं लगेगा और न ही उत्पाद शुल्क अधिकारी ट्रांजिट के दौरान ज्वैलरी चौक करेंगे। वहीं पुरानी ज्वैलरी से नई ज्वैलरी बनवाने पर ग्राहकों को सिर्फ वैल्यू एडीशन की राशि पर उत्पाद शुल्क का भुगतान करना होगा।
वित्त मंत्राालय ने कहा कि सरकार ने ज्वैलर्स के साथ विचार विमर्श के लिए गठित की गयी उप समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। मंत्राालय ने कहा कि सरकार ने समिति की उस सिफारिश को भी स्वीकार कर लिया है जिसके तहत एक करोड़ रुपये से कम डूटी का भुगतान करने वाले ज्वैलर्स की इकाइयों का प्रथम दो वषों‍र् तक उत्पाद शुल्क का ऑडिट नहीं किया जाएगा।
मंत्राालय ने कहा कि सरकार ने उत्पाद शुल्क का पंजीकरण कराने के लिए जरूरी कारोबार की सीमा को भी बढ़ा दिया है। जिन ज्वैलर्स का कारोबार गत वित्त वर्ष में 15 करोड़ रुपये से कम था, उन्हें उत्पाद शुल्क के लिए पंजीकरण लेने की आवश्यकता नहीं होगी। पहले यह सीमा 12 करोड़ रुपये थी। इसी तरह जिन ज्वैलर्स का कारोबार मौजूदा वित्त वर्ष में 10 करोड़ रुपये को पार करता है तो उन्हें उत्पाद शुल्क के लिए पंजीकरण कराना होगा। पहले यह सीमा 6 करोड़ रुपये थी। साथ ही अगर किसी ज्वैलर्स का कारोबार मार्च 2016 में 85 लाख रुपये से अधिक है तो उसे पंजीकरण कराने की जरूरत होगी। सरकार ने दस करोड़ की कारोबारी सीमा ज्वैलर्स की मांग पर लागू की है। इसकी कमेटी ने सिफारिश नहीं की थी।
उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2016-17 में ज्वैलरी पर एक प्रतिशत (इनपुट और कैपिटल गुड्स के्रडिट के बिना) उत्पाद शुल्क लगाने को एलान किया था जिसका देशभर में ज्वैलर्स ने विरोध किया था। इसके बाद सरकार ने ज्वैलर्स की शिकायतों पर विचार करने के लिए हाई लेवल कमेटी की एक उप समिति गठित की थी जिसने अपनी रिपोर्ट 23 जून को सरकार को सौंपी है। हाई लेवल कमेटी का गठन सरकार ने उद्योग जगत के साथ कर संबंधी मामलों पर चर्चा के लिए किया था।

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