नई दिल्ली: बजट में में सरकार ने गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम के माध्यम से देश में पडे़ सोने का उपयोग करने करके गोल्ड की तस्करी और आयात को काम करने का प्रयास किया गया है। भारत हर वर्ष विदेशों से लगभग 800 से 1000 टन सोना आयत करता है। इसलिए सरकार ने इतनी बड़ी मात्रा में सोने के आयात को रोकने के लिए गोल्ड पर कस्टम ड्यूटी 10 प्रतिशत की थी
लेकिन इसका सबसे बघ नुक्सान यह हुआ कि वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक वर्ष 2014 में अवैध रास्ते से अर्थात तस्करी का सोना 200 टन आया था। ऐसा अनुमान है कि भारतीय परिवारों के पास लगभग 20,000 टन गोल्ड है।
इंडस्ट्री की ओर से लगातार मांग किए जाने के बावजूद उम्मीद थी कि वित्त मंत्री गोल्ड आयात में टैक्स कटौती करेंगे। जिससे गोल्ड की तस्करी की आशंका लगातार बानी रहेगी। फाइनेंस मिनिस्टर ने देश में ब्लैक मनी पर लगाम लगाने के लिए बहुत से उपायों की घोषणा की है, लेकिन उन्होंने देश में गोल्ड की तस्करी के बड़े मुद्दे को अनदेखा कर दिया।
अगर इंपोर्ट ड्यूटी कम नहीं की जाती तो अवैध रूट से गोल्ड आना जारी रहेगा और ब्लैक मनी भी इसके जरिए देश में आने का रास्ता तलाश सकती है। गोल्ड ट्रेडर्स की माने तो पिछले एक वर्ष में अवैध तरीके से आने वाले गोल्ड के मुकाबले ऑफिशियल गोल्ड की लैंडिंग कॉस्ट 20 पर्सेंट बढ़ी है क्योंकि कड़े इंपोर्ट नॉर्म्स के चलते प्रीमियम में इजाफा हुआ है।
मतलब यह कि अगर तस्करी से आने वाले गोल्ड में पैसे काम देने पद रहे है तो आॅफिशियल रास्ते आयात करके गोल्ड क्यों मगाँयें। गोल्ड की स्मगलिंग और इसके जरिए आने वाली ब्लैक मनी को तभी कम किया जा सकता है कि जब सरकार इंपोर्टेड गोल्ड पर देश की निर्भरता कम करे। जेटली की गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम इस दिशा में एक कदम है लेकिन स्कीम के भरोशे तस्करी और आयात में कमी आना निश्चित नहीं लगता है। क्योंकि सवाल यही है कि गोलोग के पास पघ गोल्ड व्याज स्कीम के असर थोघ मुश्किल लगता है।
इससे पहले इंडस्ट्री ने सरकार को गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम के तहत एक बैंक एकाउंट खोलने का प्रपोजल दिया था, जिसमें गोल्ड अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के लिए रखा जा सके और इस पर मौजूदा इंटरेस्ट रेट के मुताबिक इंटरेस्ट दिया जाए।
जब एकाउंट मैच्योर होगा तो इंटरेस्ट रुपये में नहीं, बल्कि गोल्ड में दिया जाएगा और इनवेस्टर के पास एकाउंट में ज्यादा गोल्ड होगा। बैंक इस गोल्ड को ज्वैलर्स को उधार दे सकते हैं या इसे रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया (आरबीआई) के पास रखा जा सकता है। इससे बैंकों के लिए लिक्विडिटी की स्थिति बेहतर होगी। लेकिन कुल मिलाकर इंडस्ट्री का मानना है कि देश में बने गोल्ड कॉइन पेश करना भी एक अच्छा कदम है