केंद्र, राजस्थान सरकार और जीएसटी परिषद को नोटिस

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वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू किए जाने के बाद राज्य निवेश प्रोत्साहन योजना के तहत  लाभ मुहैया नहीं कराए जाने की वजह से व्यावसायियों ने राजस्थान सरकार के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है। जोधपुर उच्च न्यायालय और जयपुर पीठ ने इन मामलों में केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार और जीएसटी परिषद को नोटिस भेजे हैं। राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना की घोषणा अक्टूबर 2014 में की गई थी। इस योजना में मल्टीप्लेक्स, वाटर एवं थीम पार्कों समेत अन्य क्षेत्रों के लिए सात वर्ष तक मनोरंजन कर में 50 प्रतिशत तक की छूट दी गई थी। इसके अलावा, पूंजीगत वस्तुओं पर 7.5 अरब रुपये से अधिक का निवेश करने वाली कंपनियों को प्रवेश शुल्क से भी छूट दी गई थी।
इसी तरह राज्य में निवेश बढ़ाए जाने और रोजगार पैदा किए जाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों को राज्य स्तर के मूल्य वर्धित कर (वैट) से भी राहत प्रदन की गई। हालांकि जीएसटी को लागू किए जाने के बाद ये लाभ बंद कर दिए गए। योजना को बंद करने के खिलाफ मामला दर्ज कराने वाले लोगों का कहना है कि हालांकि फरवरी में पेश राज्य के बजट में इन लाभ को आगे बढ़ाए जाने की घोषणा की गई है, लेकिन इस बारे में अभी तक कोई आधिकारिक सूचना जारी नहीं की गई है।  खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर अभिषेक रस्तोगी ने कहा कि व्यवसायियों ने राज्य सरकार के वादों को ध्यान मे रखकर निवेश किया। उन्हें उम्मीद है कि ये वादे बरकरार रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार वादे से भटक रही है और उसे वचनबद्घता के सिद्घांत के आधार पर अदालत में सामना करना पड़ेगा।’
‘जीएसटी रिफंड के मुद्दे का समाधान करेगा ई-वॉलेट’
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा है कि ई- वॉलेट प्रणाली पेश किए जाने से उन निर्यातकों की समस्या दूर होगी जो जीएसटी व्यवस्था के तहत कर वापसी में देरी की शिकायत करते रहे हैं। ई- वालेट प्रणाली के तहत निर्यातकों के पिछले रिकार्ड को देखते हुए एक अनुमानित राशि उनके खाते में भेजी जाएगी और इस राशि का उपयोग कच्चे माल पर कर के भुगतान में किया जा सकता है।  प्रभु ने कहा कि वाणिज्य एवं वित्त मंत्रालयों के सचिव इस पर काम कर रहे हैं। उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा, ई- वॉलेट प्रणाली एकमात्र जरिया है जिससे इसका समाधान समुचित तरीके से किया जा सकता है। इस बारे में वित्त मंत्रालय को निर्णय करना है। ई- वॉलेट वास्तव में इस मुद्दे का हल करेगा क्योंकि तब आपको  (निर्यातकों) भुगतान करने या रिफंड की जरूरत नहीं होगी।
निर्यातकों के मुताबिक करों की वापसी में देरी से उनकी कार्यशील पूंजी फंस रही है और उनका निर्यात प्रभावित हो रहा है। निर्यातकों का पैसा वापस करने में देरी अब आठ महीने से अधिक हो गई है। दूसरी तरफ राजस्व विभाग ने यह दलील दी है कि निर्यातकों ने सीमा शुल्क विभाग और जीएसटी नेटवर्क के पास जो फार्म जमा कराए हैं, उसमें विसंगतियां हैं। निर्यातकों के अनुसार नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के अंतर्गत शुल्क दावों की वापसी में देरी के कारण करीब 20,000 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। जीएसटी से पहले निर्यातकों को शुरू से ही शुल्क देने से छूट प्राप्त थी। लेकिन उन्हें पहले कर देना होगा और उसके बाद रिफंड की मांग करनी होगी।
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