आज लोग मंदिरों तथा मन्त्रों से दूर होते जा रहे हैं मंदिरों के प्रधान लोग तो बहुत कोशिश करते हैं कि लोग मंदिरों में आ जाएं, मगर लोगों का रुझान इस तरफ कम होता जा रहा है। एक समय था कि लगभग हर घर में एक दो सदस्य मंदिर जरूर जाते थे मगर आज ऐसे लोगों की संख्या एक प्रतिशत भी नही रह गई है। इसी तरह लोग पहले संतों परमात्माओं के पास जाते थे, इनकी इज्जत करते थे मगर आज संतों महात्माओं को देखकर लोग मुंह फेर लेते हैं इसका कारण क्या है ? इसका प्रमुख कारण है मंदिरों में संत महात्माओं का आचरण, वह जो ज्ञान लोगों को देते हैं वैसा आचरण खुद नहीं करते हैं। संतों का आचरण भी आज योगी की जगह भोगी जैसा होने लगा है इसलिए लोगों का मन इस और से हट हुआ है। अब लोग अगर मंदिर जाते भी हैं तो मंगलवार के व्रत के प्रसाद के बहाने या शनिवार शनिदान या तेल चढाने के लिए। अगर मंदिर में कोई कथा कीर्तन चल रहा है तो वहां बस कुछ बुजुर्ग, महिलाएं और पुरुष ही दिखाई देते हैं। क्या आने वाली पीढ़ी मंदिरों और मन्त्रों अपनाएगी या इससे दूर हो जाएगी क्योंकि छोटे-मोटे संतों के आज कोई जाता नही और जो जाते भी है वह उन्ही पास जाते हैं जो बाबा आज ब्रांड बन चुके हैं। संत आशाराम के जेल जाने के बाद अब सतर्क हो गए हैं जो संत महात्माओं के नाम पर लूटने का काम कर रहे थे। अब ऐसे संतों को भी समझ अ चुका है कि लोगों की आस्था संतों में रखनी है तो अपने आचरण तथा कर्मों में सुधार लाना बहुत आवश्यक है। जो जनता संतों को अपनी आस्था से बड़ा बनाते है वह पलभर में जमीन पर भी ला देती है। ऐसा भी नही है कि संत और महात्मा पाखंडी हो चुके हैं ऐसे संत आज भी मौजूद है जो जंगलों, पहाड़ों, कंदराओं, में बैठकर तप कर रहे हैं और करोड़ों अनुयायी हैं मगर दिखावा मात्र नही है। मेरा मानना यह है कि ऐसा समय आने वाला है जब लोग भ्रमज्ञान से निकलकर ब्रह्मज्ञान में जाना पसंद करेगा।