समय की कमी से जीएसटी क्रियान्वयन में शुरुआती दिक्कतें आईं: जीएसटीएन सीईओ

नई दिल्ली
नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के प्रौद्योगिकीय आधार, जीएसटीएन को तैयार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलने की वजह से नई कर व्यवस्था के लागू होने के शुरुआती दौर में दिक्कतें आईं। यह बात जीएसटीएन के एक शीर्ष अधिकारी (सीईओ) ने कही। उन्होंने कहा, ‘सिस्टम अब मजबूत बन चुका है और नीति-निर्माताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि आगे सिस्टम में किसी प्रकार का बदलाव करने के लिए पर्याप्त समय देना होगा।’

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पिछले साल एक जुलाई को जीएसटी लागू होने के बाद पहले ही दिन से सिस्टम में खामियां पैदा होने लगीं और शुरुआत में पैदा हुईं समस्याएं एक फरवरी को ई-वे बिल लागू होने के बाद और बढ़ गईं। जीएसटीएन के सीईओ प्रकाश कुमार ने कहा कि ई-वे बिल लागू करने की तिथि पहले एक अप्रैल रखी गई थी, लेकिन इससे पहले ही फरवरी में इसे लागू कर दिया गया, जो एक भूल थी। कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘अगर एक अप्रैल की तिथि तय की गई थी तो हमें उसी तिथि का अनुपालन करना चाहिए था। तय समय नहीं दिया गया और इस बात से हर कोई अवगत था।’

कुमार ने कहा, ‘सूचना प्रौद्योगिकी को लेकर गठित मंत्रीसमूह ने इसकी जांच की और कहा कि इसे समय से पहले लागू नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं, मंत्रीसमूह के अध्यक्ष सुशील मोदी ने कहा कि इसे क्रमबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए। सिस्टम और यूजर दोनों को समय दिया जाना चाहिए।’

ई-वे बिल लागू होने से पहले भी सिस्टम में खराबी थी, जिसके संबंध में कुमार ने कहा कि समय की कमी की वजह से यह खराबी पैदा हुई। उन्होंने कहा, ‘समय कम था। खामियां थीं और मॉड्यूल का क्रमबद्ध ढंग से संचालन नहीं हो पा रहा था। इसकी वजह यह थी कि कानून का मसौदा तैयार कर जिस तरीके से इसे पेश किया गया और नियमों और रिटर्न फॉर्म का प्रावधान किया गया, वैसे में समय की बाध्यता थी।’जीएसटीएन में पूरा सिस्टम मसौदे के आधार पर तैयार किया गया, लेकिन पिछले साल मार्च में कानून में बदलाव किया गया। उन्होंने कहा, ‘इस प्रकार, हमारे पास कानून मार्च में बनकर आया। नियमों पर अंतिम फैसला अप्रैल और मई में हुआ और हमारे पास अधिकांश फॉर्म जून और जुलाई में आए। इसलिए इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।’

कुमार ने कहा कि सरकार के लिए भी समयसीमा थी, क्योंकि नई कर व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए सिर्फ एक साल का समय था। उन्होंने कहा, ‘आठ या नौ सितंबर के बाद अव्यवस्था हो जाती, जब केंद्र या राज्य की कोई सरकार कोई कर लगा पाती। अगर आप कर नहीं लगाएंगे तो फिर सरकार कैसे चलेगी?’

उन्होंने कहा, ‘दोषारोपण करना आसान है कि कोई योजना नहीं थी, लेकिन हमने लागू किया और अब यह व्यवस्था सुचारु हो गई है। अब हमारा ध्यान इस बात पर नहीं होना चाहिए कि पीछे क्या हुआ, बल्कि इस बात पर होना चाहिए कि इसमें आगे कैसे सुधार किया जाए कि यह उपयोगकर्ताओं के लिए सुविधाजनक हो।’

इसी वजह से जीएसटी परिषद ने 21 जुलाई की बैठक में रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया में पूरा बदलाव लाने का फैसला किया और परिषद ने आईटी सिस्टम को इसे तैयार करने के लिए छह महीने का समय दिया। उन्होंने कहा कि बाद में ई-वे बिल एक अप्रैल को लागू किया गया। सिस्टम सुचारु ढंग से काम कर रहा है और रोजाना औसतन 20 लाख रिटर्न दाखिल किए जा रहे हैं।

सौजन्य से: नवभारत टाइम्स

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