फसलों की वाजिब कीमत नहीं मिलने से तस्करी को मजबूर सीमावर्ती क्षेत्र के किसान

कोलकाता, राजीव कुमार झा। बंगाल में भारत-बांग्लादेश अंतररराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में खेती करने वाले किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम नहीं मिलना तस्करी का एक बड़ा कारण है। एक सर्वे में इस बात का पता चला है कि वाजिब कीमत नहीं मिलने से किसान व अन्य लोग तस्करी के लिए मजबूर हैं। दरअसल, सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि तथा पशुपालन पर निर्भर हैं। सीमावर्ती क्षेत्र की जमीन भी अत्यंत उपजाऊ है तथा इसमें किसान हर मौसम की सब्जियों से लेकर दालें, गेहूं, मक्का, धान, तिलहन, कपास, मौसमी फल इत्यादि का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा दूध, घी, अंडे, मांस, मछली इत्यादि का भी उत्पादन किया जाता है। अच्छी मेहनत तथा बेहतरीन कृषि फसलों के उत्पादन के पश्चात भी क्षेत्र के किसानों की आर्थिक दशा बहुत कमजोर है। इसका प्रमुख कारण है कि सुदूर क्षेत्र होने के कारण किसानों को उनके कृषि उत्पादों का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।बीते अप्रैल माह में सीमावर्ती क्षेत्रों में किसानों के उत्पादों को मिलने वाली कीमतों को राजधानी कोलकाता व अन्य शहरों के बाजारों की कीमतों के साथ जब तुलना की गई तो आंकड़े हैरान करने वाले थे। दोनों में काफी अंतर पाया गया।

किसानों का आरोप है कि राज्य सरकार की उनकी तरफ ध्यान नहीं है, लिहाजा क्षेत्र में उस तरह की आधारभूत संरचना एवं बड़े शहरों की मंडियों में उत्पादों को आसानी से भेजने की परिवहन व्यवस्था नहीं है।लिहाजा औने- पौने दामों में उन्हें उत्पादों को बेचना पड़ता है। नतीजन, गरीबी के थपेड़ों के कारण कई किसान कम मेहनत करके, अधिक पैसा कमाने के प्रति आकर्षित होकर अपनी उपजाऊ भूमि को बंजर छोड़ ट्रांस बॉर्डर अपराधों में शामिल हो जाते हैं।इनमें कई खेती के साथ तस्करी भी करते हैं। बीएसएफ अधिकारियों के अनुसार, आमतौर पर ये लोग मवेशियों, फेंसिडिल कफ सिरप, गांजा व अन्य नशीले पदार्थ, सोना- चांदी, दवाइयां, मछली के बीज, पक्षियों आदि की तस्करी करते हैं। वहीं, इनमें कुछ लोग भारत की एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में लाने एवं मानव तस्करी जैसे अपराधों में शामिल होकर दलाली करते हैं। पकड़े जाने पर जेलों की सजा भी भुगतते हैं।वहीं, कई बार तस्करों को अपनी जान को जोखिम में डालकर सीमा पर तस्करी करते वक्त अपना बहुमूल्य जीवन भी गंवाना पड़ता है।

उत्तर 24 परगना व नदिया के सीमावर्ती क्षेत्र से बीएसएफ ने बीते तीन माह में आठ किसानों को विभिन्न सामानों की तस्करी करते पकड़ा है।इनमें नदिया के पंचबेरिया से इलिम मंडल को सोने की तस्करी में पकड़ा गया।इसी प्रकार उत्तर 24 परगना के बनगांव थाना क्षेत्र के सीमावर्ती इलाके से केनाराम हलदर (41), नारायण सरदार (61), देवदास मंडल (54), निताई मंडल (33) समेत अन्य को गिरफ्तार किया गया। ये लोग अपने साथ विभिन्न सामानों को छिपाकर अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास खेती के बहाने अपने खेतों में जाकर सामानों की बांग्लादेश में तस्करी करते थे।इसी दौरान बीएसएफ ने पकड़ा।इन लोगों ने पूछताछ में बीएसएफ को बताया कि खेती से गुजारा नहीं होता है इसीलिए वे मजबूरी में तस्करी करते हैं।गौरतलब है कि भारत- बांग्लादेश सीमा पर कई जगह तारबंदी नहीं है और दोनों देशों के लोगों के खेत व घर तक आपस में सटे हैं, ऐसे में उन्हें तस्करी में आसानी होती है। इसीलिए बीएसएफ को भी काफी चौकन्ना रहना पड़ता है।

गौरतलब है कि बंगाल से बांग्लादेश की करीब 2,200 किलोमीटर सीमा लगती है, जिसमें से बीएसएफ के दक्षिण बंगाल फ्रंटियर के तहत पांच सीमावर्ती जिलों- उत्तर व दक्षिण 24 परगना, नदिया, मुर्शिदाबाद तथा मालदा की 913 किलोमीटर सीमा लगती है। इसमें कई नदियां, समतल भूमि, सुंदरवन का इलाका जिसमें ज्वार भाटा से प्रभावित नदियां, चर का इलाका इत्यादि शामिल है।इस इलाके की जमीन अत्यंत उपजाऊ है। कई स्थानों पर खेती-बाड़ी अंतरराष्ट्रीय सीमा तक की जाती है।

भारत-बांग्लादेश अंतररराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र से सटे खेत।

वहीं, बॉर्डर क्षेत्र के लोग तस्करी में क्यों शामिल होते हैं, इस बारे में पूछे जाने पर बीएसएफ के दक्षिण बंगाल फ्रंटियर के प्रवक्ता व डीआइजी सुरजीत सिंह गुलेरिया ने भी बताया कि कई जगह लोगों की आर्थिक दशा कमजोर है और काफी बेरोजगारी है, जो तस्करी की मुख्य वजह है। खेती- बारी से गुजारा नहीं होता है तो वे लोग पैसे के लालच में इस प्रकार के अपराधों में शामिल हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि किसानों को फसलों का उचित मूल्य मिले तो वे अपना ध्यान उस पर देंगे।

वरिष्ठ बीएसएफ अधिकारी ने बताया, ‘जब हम सीमा पर गश्त/पैट्रोलिंग करते हैं तो दिखाई देता है कि बांग्लादेश के किसानों द्वारा जीरो लाइन तक अपनी एक- एक इंच भूमि पर अच्छी फसल उगाई जाती है, लेकिन हमारे किसानों द्वारा अपनी भूमि या तो कुछ स्थानों पर बंजर रखी होती है या ठीक से खेती नहीं की होती है, तो हमें बड़ा दु:ख पहुंचता है।’ उन्होंने कहा कि जो लोग तस्करी में शामिल हो जाते हैं तो वह अपनी उपजाऊ भूमि को बंजर छोड़ देते हैं। हालांकि अधिकारी ने बताया कि 2019 के पश्चात भारत-बांग्लादेश सीमा पर पशु तस्करी के पूरी तरह बंद होने तथा अन्य प्रकार की तस्करी पर अंकुश लगने के बाद बीएसएफ द्वारा सीमावर्ती लोगों को प्रोत्साहित करने के पश्चात सैकड़ों एकड़ बंजर भूमि को जोतना शुरू किया जा चुका है। लेकिन अभी भी कई स्थानों पर भारतीय किसानों की भूमि बंजर पड़ी है, उसको जोतना चाहिए ताकि किसानों को अपनी जमीन का अधिकतम लाभ हो सके।

सौजन्स ो: दैनिक जागरण

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