दिवाली पर स्मगलिंग करके लाये गये पटाखे फूटेंगे आसमान में और स्मगलरों का साथ देने वालों के दिल में

नई दिल्ली : क्रिकेट बाईचांस हो सकता है मगर स्मगलिंग बाईचांस कभी नहीं हो सकती। बिना क्लीरिंग एजेंटों तथा अफसरों के एक पिन भी इम्पोर्ट नहीं की जा सकती। हर साल डीआरआई, प्रिवेंटीव तथा अन्य एजेंसियां पटाखे पकड़ने के लिए अलर्ट रहती है मगर फिर भी करोड़ों के पटाखे चाइना से भारत में आ जाते है और सरकार की नाक के नीचे जम कर फोड़े जाते है और सरकार हाथ मलती रह जाती है और स्मगलरों की दिवाली पूरी हो जाती है। फिर वहीं स्मगलर नई प्लानिंग के साथ अगले साल की तैयारी कर लेते है कारण है भारी मुनाफा कोडि़यों के दाम खरीदे गये पटाखे सोने के दामों में बिकते है। एक तो करोड़ों की ड्यूटी चोरी दूसरा भरपूर प्लूशन मगर सरकार बेबस, कारण भ्रष्टाचार। मुम्बई नावाशिवा खुला है इस काम के लिए 100-200 कंटेनर निकाल दिये लास्ट के 5-7 पकड़े गये फिर पता चला कि लोगों द्वारा 500 कंटेनर निकल चुके है। पिछले साल यही हुआ था दिल्ली आईसीडी में कंटेनर पकड़े गये कड़ी ढुंढी तो पता चला सैंकड़ों कंटेनर निकाले जा चुके है अभी दिल्ली पड़पड़गंज में यही हुआ 100 के लगभग कंटेनर निकल चुके है मगर कस्टम की नजरें खुली लास्ट के 3 कंटेनरों पर पहले क्यों नहीं खुली। सरकार जांच करे, कभी क्राइम करने वाले इंसान का हौसला तब तक नहीं होता जब तक अफसर या सीएचए की तरफ से कोई गांरटी न दे।
यह स्मगलर इतने पागल तो होते नहीं कि पैसा खर्च करके समुद्र में डालने जैसा काम करेंगे। यह जब काम नहीं करते जब तक सीएचए या अफसर इनको भरोसा न दें कि आप का माल सही सलामत निकाल देंगे। पूरी स्कीम समझाई जाती है कि हम माल कैसे निकालेंगे और आप वहां कैसे भेजोगे।
कई क्लीरिंग एजेंटों के यहां धक्के खाते है तब जा कर कोई हां करता है ऐसा सूत्रा बताते है। नहीं तो अपना सीएचए लाईसेंस लेकर काम करते है। अगर पड़पड़गंज के पटाखे की बात की जाये तो दो लड़के बताये जा रहे है। इस काम में एक यमुनापार का है तथा दूसरा शायद जनकपुरी का बताया जा रहा है। साउथ दिल्ली में इन लोगों ने एक फार्म हाउस किराये पर ले रखा है बताया जा रहा है जो कि मार्किट से खबरें छन कर आ रही है। दो नाम भी सामने आ रहे है। आज तक एक दो केस छोड़ दिये जाये तो इन पटाखे लाने वालों तक डिपार्टमेंट कभी भी नहीं पहुंच सका है। सरकार के हाथ लम्बे होते है इसमें कोई शक नहीं मगर यह हाथ जब अपनों तक पहुंचने लगते है तो बीच में ही रोक दिया जाता है कि निशाना कहीं और कर दो। यह है सरकार की नीति हर साल स्मगलरों की जेबें भर जायेगी और देश इसी तरह प्लूशन की मार झेलता रहेगा।

  • 6,000 करोड़ रुपये भारत का सालाना आतिशबाजी कारोबार
  • 30,000 करोड़ रुपये चीन का सालाना आतिशबाजी कारोबार
  • 700 करोड़ रुपये के पटाखे 2014 में चीन से किए गए थे आयात

चाइना से आए खराब गुणवत्ता के खतरनाक पटाखों की खेप बरामद

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जनता से अपील की थी कि इस बार दिवाली में देश में बने उत्पादों का ही प्रयोग करें। लगता है कि सरकारी अमले ने भी इसे गंभीरता से लिया है। पिछले कुछ वर्ष से दिवाली में चीनी सामान की जो रेलमपेल होती थी, उससे अब निजात मिलने के आसार हैं। बहुत संभव है कि इस दिवाली में चीन निर्मित खराब गुणवत्ता के पटाखों, दियों और गणोश-लक्ष्मी की मूर्तियों पर लगाम लगे। इस कदम से मिट्टी के दिए और मूर्तियां बनाने वाले कुम्हारों और घरेलू उद्योगों को फायदा होगा। चीन से आयातित उत्पादों ने इन लोगों की न सिर्फ रोजी-रोटी छीन ली है, बल्कि इनसे प्रदूषण भी ज्यादा होता है।
सूत्रों के मुताबिक पिछले दो-तीन दिन के भीतर मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, त्रिची, विजयवाड़ा, मदुरै और लुधियाना समेत एक दर्जन शहरों में डीआरआई ने एक साथ छापेमारी की है। इस दौरान सौ से ज्यादा गोदामों से घटिया किस्म के चीनी पटाखे जब्त किए गए हैं। घरेलू कारोबारियों ने गैरकानूनी तौर पर चीन में बने इन पटाखों का आयात किया था। वाणिज्य मंत्रालय ने कानूनी तौर पर विदेश से पटाखे आयात करने की छूट दे रखी है। हालांकि, इसके लिए लाइसेंस लेना पड़ता है। तथ्य यह है कि वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से किसी को भी पटाखे आयात करने का लाइसेंस नहीं मिला है। सरकार की नजर घटिया प्लास्टिक या खतरनाक रंग के इस्तेमाल से बनाई गई मूर्तियों और अन्य सजावटी सामान पर भी है। इन सभी उत्पादों के आयात की इजाजत है, लेकिन सरकार गुणवत्ता, पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी आधार पर इन पर पाबंदी लगा सकती है। अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों ने पूर्व में चीन निर्मित खिलौनों पर पाबंदी लगाई है। सनद रहे कि दिवाली में घरेलू सजावट पर चीन निर्मित उत्पादों का एक तरह से पूरे देश में कब्जा हो गया है। लाइटों से लेकर भगवान की मूर्तियां तक चीन निर्मित हैं। चीन निर्मित प्लास्टिक के दियों और मोमबत्तियों की वजह से गरीब कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं।

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