जैसा अन्न वैसा मन

Image result for महाभारत के युद्धआज मैं आपको दो कहानी सुनाना चाहता हूं। तभी बता पाऊंगा की क्या मकसद है मेरा यह सब लिखने का? कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के लिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया। कुरुक्षेत्र में युद्ध लड़े जाने का फैसला भगवान श्री कृष्ण का था। लेकिन उन्होंने कुरुक्षेत्र को ही महाभारत युद्ध के लिए क्यों चुना इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है। जब महाभारत युद्ध होने का निश्चय हो गया तो उसके लिये जमीन तलाश की जाने लगी। श्रीकृष्ण जी बढ़ी हुई असुरता से ग्रसित व्यक्तियों को उस युद्ध के द्वारा नष्ट कराना चाहते थे। पर भय यह था कि यह भाई-भाइयों का गुरु शिष्य का सम्बन्धी कुटुम्बियों का युद्ध है। एक दूसरे को मरते देखकर कहीं सन्धि न कर बैठें इसलिए ऐसी भूमि युद्ध के लिए चुननी चाहिए जहाँ क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों। उन्होंने अनेकों दूत अनेकों दिशाओं में भेजे कि वहाँ की घटनाओं का वर्णन आकर उन्हें सुनायें।
एक दूत ने सुनाया कि अमुक जगह बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ से बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा। पर उसने स्पष्ट इनकार कर दिया और उलाहना देते हुए कहा-तू ही क्यों न बन्द कर आवे मैं कोई तेरा गुलाम हूँ। इस पर बड़ा भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई को छुरे से गोद डाला और उसकी लाश को पैर पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया और जहाँ से पानी निकल रहा था वहाँ उस लाश को पैर से कुचल कर लगा दिया। इस नृशंसता को सुनकर श्रीकृष्ण ने निश्चय किया यह भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। यहाँ पहुँचने पर उनके मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे परस्पर प्रेम उत्पन्न होने या सन्धि चर्चा चलने की सम्भावना न रहेगी। वह स्थान कुरुक्षेत्र था। वहीं युद्ध रचा गया।
महाभारत की यह कथा इंगित करती है की शुभ और अशुभ विचारों एवं कर्मों के संस्कार भूमि में देर तक समाये रहते हैं। इसीलिए ऐसी भूमि में ही निवास करना चाहिए जहाँ शुभ विचारों और शुभ कार्यों का समावेश रहा हो। हम आपको ऐसी ही एक कहानी और सुनाते है जो की श्रवण कुमार के जीवन से सम्बंधित है। जब श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवर से उतारकर चलाया पैदल श्रवणकुमार के माता-पिता अंधे थे। वे उनकी सेवा पूरी तत्परता से करते किसी प्रकार का कष्ट न होने देते। एक बार माता-पिता ने तीर्थ यात्रा की इच्छा की। श्रवण कुमार ने काँवर बनाकर दोनों को उसमें बिठाया और उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चल दिया। बहुत से तीर्थ करा लेने पर एक दिन अचानक उसके मन में यह भाव आये कि पिता.माता को पैदल क्यों न चलाया जाय उसने काँवर जमीन पर रख दी और उन्हें पैदल चलने को कहा। वे चलने तो लगे पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा-इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लेना चाहिए। वे तेजी से चलने लगे जब वह भूमि निकल गई तो श्रवणकुमार को माता-पिता की अवज्ञा करने का बड़ा पश्चाताप हुआ और उसने पैरों पड़ कर क्षमा माँगी तथा फिर काँवर में बिठा लिया।
उसके पिता ने कहा-पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं। उस भूमि पर किसी समय मय नामक एक असुर रहता था उसने जन्मते ही अपने ही पिता-माता को मार डाला था उसी के संस्कार उस भूमि में अभी तक बने हुए हैं इसी से उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि उपजी। अच्छे बुरे काम का असर उस धरती पर कितना होता है महापुरुष भी समझाते थे वहां के उगने वाले अनाज और सब्जियों में भी वही कण विद्यमान होते हैं जो खाते हैं वैसे ही विचार उत्पन्न होते हैं। सन्तों ने कहा है कि जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन। आज दिल्ली में कोई ऐसा गलत काम है जो नहीं हो रहा है। हत्या डकैती लूट-पाट यह तो आम बात है। औरतों और लड़कीयो से छेड़छाड़ मां बाप के साथ दुर्व्यहार प्रतिदिन समाचार पत्र इन सभी बातों से भरे होते हैं। तो बताओ दिल्ली के लोगों में शान्ति कैसे आयेगी?
इसके अलावा वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण हद पार कर चुका है। कैसे जीयेंगे इंसान यहां पर किस भूमि का अनाज खाया जा रहा है विदेशी दालें खायीं जा रहीं हैं, फल भी विदेशी आ रहे हैं। कहां कहां कि क्या चीजें खा रहे हैं कैसे रहेगा मन शांत हमारा इस कहानी को आगे बढ़ाया जाये तो हर चीज का सबूत है। विदेशी खाने पीने का असर कितना पड़ रहा है। हमारा तथा हमारे बच्चों का शरीर स्वार्थी देशों का समान खाकर स्वार्थी हो चुका है। गद्दार देशों की दालें खा कर गद्दारी सीख रहे हैं। हमारे खून में वह सब जा रहा है जो हम खा रहे हैं। हम तथा हमारे बच्चे हिंसक और असभ्य नहीं बनेंगे तो क्या बनेंगे? कुछ भी कहो समय अच्छा नही आ रहा है हमारे पास मात्र बचा है तो एक राम का नाम जिसको जपने से इन सभी दुष्ट प्रभावों से बचा जा सकेगा।

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