जल पान स्वयं ही एक चिकित्सा है

Image result for जल पान स्वयं ही एक चिकित्सा हैारीर के सही पोषण के लिए पानी की संतुलित मात्रा जरूरी है। प्रतिदिन 6 से 8 गिलास पानी हर व्यक्ति के लिए जरूरी होता है। गर्मी के दिनों में 2 से 3 गिलास ज्यादा पानी पिएं। जब भी आपको किसी तरह की एलर्जी या सिरदर्द हो तो ज्यादा पानी पिएं। इससे यूरिन के माध्यम से शरीर से टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं।
अल्कोहल, कॉफी, चाय तथा सोडा जैसे पेय हमारे टिश्यू को पानी की पूर्ति नहीं करते और व्यक्ति डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाता है, अत: हाइड्रेशन का बेहतर उपाय पानी ही है। फ्रूट जूस और सूप कुछ हद तक पानी की कमी को पूर्ति करते हैं।
पानी हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है तथा जहरीले पदार्थों को शरीर से बाहर करता है। हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है। सच तो यह है कि ब्रेन और मसल्स 75 प्रतिशत पानी से बने हंै तथा ब्लड में 85 प्रतिशत पानी है, अर्थात बोन और फैट टिश्यू को छोड़ दें तो ज्यादातर हमारा शरीर पानी से बना है।
कुछ खाये बिना मनुष्य कई दिनों तक जीवित रह सकता है किंतु केवल 60 से 70 घंटे जल न पीने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है इसलिए जीवन-रक्षा के लिए जो कुछ आवश्यक है, उसमें वायु के बाद जल का ही स्थान है।
हमारे शरीर को एक जटिल जल-प्रणाली कहा जा सकता है। छोटी व बड़ी कई प्रकार की नलियों में से उसके एक अंश से दूसरे अंश में भिन्न-भिन्न प्रकार के तरल पदार्थ प्रति क्षण दौरा करते हैं। प्रकृति शरीर के प्रत्येक तंतु को जो खाद्य परोसती है, जल ही उसका वाहन है। शरीर का प्रत्येक क्षुद्रतम कोष भी सर्वदा पानी से धुलता रहता है, इसलिए शरीर में रस की समता को बनाये रखने के लिए प्रतिदिन पर्याप्त पानी पीना चाहिए।
यदि हम ऐसा न करें तो प्रकृति खून, मांसपेशियों और शरीर के विभिन्न तन्तुओं से जलीय अंश लेने के लिए बाध्य होती है। फलस्वरूप प्यास बढ़ती है, आंखें बैठ जाती है, होंठ और जीभ सूख जाते हैं, मल सख्त होता है, वजन घट जाता है तथा शरीर में जल का अभाव होने से अम्ल और क्षार के अनुपात में परिवर्तन आता है और कभी-कभी शरीर का ताप बढ़ जाता है।
शरीर में से बहुत सा विष प्रतिदिन बाहर निकलता है और यह केवल यथेष्ट जल के माध्यम से ही संभव होता है। अगर ऐसा न हो तो शरीर का विष अन्दर रूककर रक्त को विषाक्त बना देता है।
जल पीने का नियम यही है कि जब पेट खाली रहता है, तब ही यथेष्ठ जल का पान करना चाहिए। इसलिये जल पीने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रात: काल नींद से उठते ही है। पर्याप्त जल पीने से शरीर की भिन्न-भिन्न रस-स्रावी ग्रंथियों का स्राव बढ़ता है।
ऐसा समझ जाता है कि अधिक जल पीने से शरीर में पानी जमा हो जाता है। यह एक भ्रम है। यदि दो घंटे के अंदर एक लिटर पानी पिया जाए, वह भी चार-पांच घंटे के अंदर शरीर में से संपूर्ण रूप से निकल जाता है। फिर भी यह याद रखना चाहिए कि खाली पेट पानी पीने से पानी शरीर में से शीघ्र बाहर निकल जाता है परंतु भोजन के समय या भोजन के तुरन्त पहले पानी पीने से यह दीर्घ समय तक शरीर के भीतर रहता है।
पानी के साथ नींबू का रस लेने से अत्यधिक लाभ होता है। नींबू पानी पीने से खाद्य वस्तु छोटी में आंत सड़ नहीं पाती और उसमें विष का उत्पादन बंद होता है। जल पान शरीर की सफाई की एक विधि है। पानी पीते ही वह खून के द्वारा शरीर के तंतुओं के भीतर फैल जाता है और शरीर के अणु-परमाणु तक को धोकर नाना प्रकार का कूड़ा-कचरा लेकर शरीर से बाहर निकल जाता है, अत: जल पान स्वयं में ही एक चिकित्सा है।
अजीर्ण रोग में पानी दवा की तरह काम करता है। मन्दगि में भोजन के आधे घंटे से 45 पूर्व आधा गिलास ठंडा पानी पीने से ठंडक की प्रतिक्रिया के द्वारा पाकस्थली में एक उत्तेजना का संचार होता है जिससे परिपाक की शक्ति बढ़ती है।
ज्वर के समय जल पीने से बहुत लाभ होता है। रोगी जितना पानी बिना कष्ट के पी सकता है, उतना ही पानी उसे पीने देना चाहिए। जुकाम होने पर नींबू के रस के साथ पर्याप्त पानी पीना उचित है। इससे शरीर का यथेष्ट विष बाहर निकल जाता है और रोग कम हो जाता है। वात व्याधि तथा जोड़ों की सूजन आदि में जल पान अत्यंत लाभदायक है। यह रक्त प्रवाह को तरल करते हुए यूरिक एसिड तथा अन्यान्य हानिकारक पदार्थों को घोलकर शरीर से बाहर निकाल देता है।
पथरी में जितना संभव हो, पानी पीना चाहिए। पित्त पथरी में यथेष्ट जल पान करने से यकृत धुल जाता है और पित्त इस प्रकार पतला हो जाता है कि वह ठोस नहीं हो पाता तथा ठोस पत्थर भी धीरे-धीरे पिघलकर बाहर निकल जाता है।
मधुमेह रोग में शरीर में अतिरिक्त चीनी जमा हो जाती है। यथेष्ट जलपान करने से वह पसीने तथा पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है। एक अनुभवी डॉक्टर का कहना है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन आठ औंस गिलास के आठ गिलास पानी पिएं तो दो पीढ़ियों के भीतर दुनियां से मधुमेह रोग संपूर्ण रूप से समाप्त हो सकता है।
जलपान सभी अवस्थाओं मेंअत्यन्त हितकर होने पर भी किसी-किसी समय सावधानी का अवलंबन करना आवश्यक है।
शरीर की क्लान्त अवस्था में कभी ठंड पानी नहीं पीना चाहिए। जब बुखार से रोगी को पसीना आता रहता है, तब किसी भी अवस्था में उसे शीतल जल नहीं देना चाहिए। उस समय प्यास लगने पर गरम पानी दिया जा सकता है। बहुत दुर्बल व्यक्ति को भी कभी अधिक शीतल जल नहीं पीना चाहिए और न ही एक-साथ अधिक पानी पीना चाहिए। जो लोग यथेष्ट जल पान नहीं कर सकते, उन्हें पहले पहल केवल एक चैथाई गिलास पानी पीना और क्रमश: मात्रा बढ़ाना उचित है।
यह आवश्यक है कि पीने का पानी बहुत साफ होना चाहिए। गंदा पानी पीने से नाना प्रकार के रोग हो जाते हैं। जहां साफ पानी नहीं मिलता, वहां पानी उबालकर और उसके बाद छानकर पीना चाहिए।

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