गंगा नदी के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर हम यों कहें कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आर्यावर्त्त का सांस्कृतिक विकास गंगा नदी से प्रभावित है तो इस कथन में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारतीय सभ्यता का अधिकांश भाग इसके ही किनारे और इसकी सहायक नदियों के तट पर बना है। भारतीयों का जीवन गंगा नदी से जितना प्रभावित है, उतना किसी और नदी से प्रभावित नहीं।
गंगा को हम गंगा मां क्यों कहते हैं? जिस तरह माता अपने शिशु को दूध पिलाती है, पालन पोषण करती है, उसी तरह गंगा नदी भी अपने जल रूपी दूध से प्राचीन काल से ही भारतीयों को जीवन प्रदान करती आ रही है। इसलिए हम गंगा को मां कहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि-नदियों में श्रेष्ठ भागीरथी मैं ही हूं। आज भी बुजुर्ग लोग कहते हैं ‘नदीषु गंगा श्रेष्ठ’ अर्थात नदियों में श्रेष्ठ गंगा है। यह भारत की सबसे पवित्रा नदी है। संस्कृत में एक श्लोक है-गंगा च यमुने चेव, गोदावरी, सरस्वती,नर्मदे सिंधु कावेरी, जलोस्मिन सन्निधि कुरू।
इस श्लोक का गंगा का नाम पहले क्यों? इसलिए कि गंगा सभी पवित्रा नदियों का प्रतिनिधित्व करती है, यानी यह पवित्रातम सरिता है।
गंगा नदी की तर्ज पर ही गोदावरी को दक्षिण की गंगा कहा जाता है। भारत की अनेक छोटी -छोटी नदियों के नाम गंगा नदी के नाम पर हैं जैसे किशनगंगा, सोनगंगा, बाणगंगा, रामगंगा, दूधगंगा इत्यादि। हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल इसी नदी के किनारे हैं। काशी, प्रयागराज, हरिद्वार, सुल्तानगंगा हिंदू ह्रदय के केंद्र है। ये तीर्थ स्थल परम पावनी भगीरथी के तट पर होने के कारण दुगुने श्रद्धा के केंद्र हैं।
गंगा हिमालय पर्वत के गंगोत्राी ग्लेशियर के गोमुख से निकलती है। गंगोत्राी हिंदुओं का अपार श्रद्धा स्थल है। जहां यह नदी समुद्र में गिरती है, उस स्थान को गंगा सागर कहते हैं। वहां स्नान करना पुण्यदायक माना जाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर वहां मेला लगता है जिसे गंगासागर का मेला कहते हैं। भारतीयों की प्राचीन काल से ही इस देवनदी के प्रति अटूट श्रद्धा और कृतज्ञता रही है। इसी श्रद्धा से भाव विभोर होकर इसके उदगम और मुहाने को तीर्थ मानने लगे।
अनेक नदियां समुद्र में गिरती हैं। उन नदियों के मुहाने के प्रति लोगों की कोई श्रद्धा नहीं हैं। हिमालय से गंगा के अलावा दर्जनों नदियां निकलती हैं। उन नदियों के उद्गम के प्रति ( यमुना नदी के उद्गम यमुनोत्राी को छोड़कर) लोगों में कोई श्रद्धा नहीं है। इसलिए हम कह सकते हैं कि गंगोत्राी से गंगा सागर तक आर्यावत्र्त का सबसे अच्छा दृश्य हे।
हमारे जीवन में गंगोदक का संबंध बहुत नजदीक है। जब कोई परलोक सिधार रहा हो तो उसे गंगाजल ओर तुलसीदल पिलाते हैं। किसी भी अपवित्रा स्थान पर इसका जल छिड़क देने से वह स्थान पवित्रा माना जाता है। मांगलिक अवसरों पर गंगाजी की उपस्थिति अनिवार्य मानी गयी है। देवनदी के दर्शन, भजन और पान से तीनों पाप दूर हो जाते हैं। हिंदुओं का अंतिम संस्कार भी इस नदी के किनारे करना उत्तम माना गया है। इसका जल वर्षों रखे रहने पर भी खराब नहीं होता है, इसलिए इसे अमृत तुल्य माना गया है।
आखिर रहस्य क्या है कि इसे हम मां कहते हैं, इसका जल अमृत तुल्य मानते हैं, इसके जल में कीड़ा नहीं लगता है, दर्शन, भजन और पान करना पुण्य माना जाता है। इतनी रहस्यमय संसार मंे कोई और नदी क्यों नहीं है? क्योंकि यह देवनदी है। पहले यह देवलोक में बहती थी। राजा भगीरथ कई हजार वर्ष तक तपस्या करके पृथ्वी पर लाये, इसलिए इसे भागीरथी भी कहते हैं।
स्वर्ग की हर वस्तु आश्चर्यजनक होती है जो मनुष्यों के लिए लभ्य है। जब ऐसी अलभ्य और अनोखी वस्तु पापियों को भी अनायास मिल जाये तो उस वस्तु के हर पहलू को पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ क्यों नहीं माना जाये।