एयरक्राफ्ट इंपोर्ट पर लग सकती है रोक

नई दिल्ली : पर्सनल और ऑफिशियल यूज के लिए कम रेट्स पर एयरक्राफ्ट इंपोर्ट करने से कॉरपोरेट ग्रुप्स को रोका जा सकता है। एविएशन रेगुलेटर ने अगर ऐसा किया तो वे कंपनियां इसका विरोध कर सकती हैं, जो बड़े पैमाने पर इन-हाउस चार्टर ऑपरेशंस चलाती हैं।
डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने प्रस्ताव रखा है कि कंपनियों को नॉन-शेड्यूल्ड ऑपरेटर लाइसेंस के जरिये 3-4 पर्सेंट तक की कम दरों पर एयरक्राफ्ट इंपोर्ट करने से रोका जाना चाहिए। पर्सनल यूज के लिए इंपोर्ट किए जाने वाले विमान पर 19-21 पर्सेंट की दर से टैक्स लगता है, लेकिन बड़े कॉरपोरेट ग्रुप्स एनएसओपी लाइसेंस लेकर और विमान के लिए एक अलग एविएशन सब्सिडियरी कंपनी बनाकर बेहद कम दरों पर इंपोर्ट कर लेते हैं। इसके बाद एयरक्राफ्ट को ऑफिशियल और पर्सनल यूज के लिए पैरेंट ऑर्गनाइजेशन को दे दिया जाता है।
डीजीसीए का मानना है कि ऐसा करना नियमों का दुरुपयोग है। वह नियमों में बदलाव कर ऐसी सब्सिडियरी कंपनियों को अपनी पैरेंट फर्मों को विमान देने से रोकना चाहता है। कंपनियां फिर भी प्रमोटर्स या चीफ एग्जिक्यूटिव्स के नाम से विमान खरीद सकती हैं, लेकिन उन्हें लाइसेंस बरकरार रखने के लिए अनिवार्य रूप से विमान का कमर्शियल उपयोग करना होगा।
अगर इस प्रस्ताव को लागू कर दिया गया तो बड़े कॉरपोरेट ग्रुप्स विरोध कर सकत हैं, जो टॉप एग्जिक्यूटिव्स, प्रमोटर्स और उनके परिवार के लोगों की यात्राओं में ऐसे विमानों का नियमित तौर पर इस्तेमाल करते हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज और अडानी ग्रुप उन हाई-प्रोफाइल कॉरपोरेट ग्रुप्स में हैं, जो पर्सनल और बिजनेस यूज के लिए विमान खरीदते हैं।
आरआईएल के पास विमानों का बेड़ा रिलायंस कमर्शियल डीलर लिमिटेड के नाम से है, जो नॉन-शेड्यूल्ड ऑपरेटर है। रिलायंस कमर्शियल डीलर्स लिमिटेड रिलायंस ग्रुप को अपने विमान देती है। आरआईएल को ईमेल से भेजे गए सवालों के जवाब नहीं मिले।
एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध के साथ कहा, ‘हमें पता है कि कई कंपनियां ऐसा करती हैं ताकि उन्हें ज्यादा टैक्स न चुकाना पड़े।’ उन्होंने कहा, ‘इसे देखते हुए हम ऐसे नियम बनाने पर विचार कर रहे हैं, जिनसे किसी भी सब्सिडियरी जनरल एविएशन नॉन-शेडल्यूल्ड ऑपरेटर को अपनी पैरेंट कंपनियों को विमान चार्टर करने का मौका न मिले। नियम यह भी बनाया जाएगा कि सभी नॉन-शेड्यूल्ड ऑपरेटरों को अपना लाइसेंस कायम रखने के लिए कमर्शियल फ्लाइट्स संचालित करनी होंगी।’
भारतीय नियमों के तहत एयरलाइन कंपनियों को नॉन-शेड्यूल्ड और शेड्यूल्ड ऑपरेटर्स की कैटेगरी में बांटा गया है। सभी बिजनेस जेट ऑपरेटर्स के पास शेड्यूल नहीं होता है और इन्हें नॉन-शेड्यूल्ड ऑपरेटर्स कहा जाता है। वहीं एयर इंडिया और इंडिगो जैसी एयरलाइंस को शेड्यूल्ड ऑपरेटर्स कहा जाता है।
डीजीसीए के एक अधिकारी ने कहा कि नए नियमों से सरकार को ज्यादा रेवेन्यू मिलेगा।
हालांकि बिजनेस एयरक्राफ्ट ऑपरेटर्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी आर के बाली ने कहा, ‘भारत में विमानों के इंपोर्ट पर टैक्स लगना ही नहीं चाहिए क्योंकि देश में विमान बनाए ही नहीं जाते हैं। नियम तो विमानों के अधिकतम उपयोग के बारे में होने चाहिए।’
स्रोत : इकनॉमिक टाइम्स
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