अमृत वचन

1. वर्ष आता है, चला जाता है। यह कोई विशेष बात नहीं। विशेष बात यही है कि हर वर्ष आदमी के विकास का कालमान बने।
2. एक-दो घण्टे मौन करना भी अच्छा है। किन्तु सबसे अच्छा है अनावश्यक न बोलना।
3. समय धन है। उसका सदुपयोग करो। व्यर्थ कार्यों में उसे व्यर्थ मत करो।
4. जिसे तुम अपना मित्र बनाते हो, उसके साथ सच्चा हार्दिक संबंध कायम करों परस्पर एक दूसरे का हित करने का संकल्प करो।
5. होठ रूपी द्वारों को अनावश्यक खुलने ही मत दो। फिर देखो, तुम्हारे भीतर कितनी शक्ति और शंति स्फुरति होती है।
6. अपनी आकांक्षाओं को सीमित करो, दु:ख भी सीमित हो जाएगा।
7. वर्तमान में जीना सीखे। अनावश्यक अतीत की स्मृतियों में बहने व अनपेक्षित अनागत के आकाश में उड़ते रहने से वर्तमान चुपके से निकल जाता है।
8. जीवन में एक संकल्प ऐसा रखो, जिसे रखने के लिए तुम अपने प्राणों का भी अर्पण कर सको।
9. काम को जीतना महाकठिन कार्य तो हो सकता है, पर असंभव नहीं। लक्ष्य बनाओ, काम के साथ युद्ध शुरू करो। कभी अकाम बन जाओगे।
10. अव्यवस्थित दस काम करने की अपेक्षा दो-तीन व्यवस्थित काम करना ज्यादा लाभदायी हो सकता है।
11. अंधकार से डरने की जरूरत नहीं, डरना कोई समाधान भी नहीं, बस एक छोटा-सा दीप जलाने की अपेक्षा है।
12. किसी को धोखा देना पाप है तो किसी से धोखा खाना मूर्खता हैं। न किसी से धोखा खाओ और न किसी को धोखा दो।
13. अपनी आलोचना का जवाब जबान से नहीं, अपने महत्वपूर्ण कायो से दो।
14. भाग्य की चिन्ता नहीं, सत्पुरूषार्थ करो, भाग्य स्वत: अच्छा हो जाएगा।
15. मृत्यु एक नियति है, उसे आला नहीं जा सकता। वह कभी भी, कही भी, किसी की भी और किसी भी अवस्था में हो सकती है।
16. सामने वाले व्यक्ति की बात पर भी ध्यान दो। उसमें भी कोई हित व कल्याण का तथ्य प्राप्त हो सकता है।
17. भलाई का काम करो, भगवान की सच्ची भक्ति हो जाएगी। तुम्हें अच्छी शक्ति मिल जाएगी।
18. तुम सम्मान पाने का प्रयास मत करों सम्मान योग्य कार्य आज से ही प्रारंभ करो।
19. जिससे तुम सहयोग लेना चाहते हो, उसके लिए तुम क्या करोगे? पहले यह निर्णय व संकल्प करो, फिर उससे सहयोग लो।
20. अतीत का पुरूषार्थ ही वर्तमान व भविष्य का भाग्य बन जाता है।
21. धन तुम्हारे अहंकार, विलास और मूच्‍​र्छा का कारण न बने। यह सोचो, वह परोपकार का साधन कैसे बन सकता है?
22. अपराध व नियमातिक्रमण का एक कारण है अज्ञान। ज्ञान का प्रदीप अनेक समस्याओं का समाधान है।
23. भाग्य से अधिक तुम्हें कुछ भी नही मिलेगा। फिर सद्भाग्य के नाशक धोखाधड़ी, पारकष्टदान जैसे तुच्छ कार्य क्यों करने चाहिए?
24. शान्तिमय जीवन का पहला व प्रमुख सूत्र है-ईमानदारी।
25. कट्टरता सर्वत्र बुरी नहीं हाती। वह बहुत अच्छी व आवश्यक भी होती है। व्रत पालन आदि के संदर्भ में तो कट्टरता अमृत हैं।
26. वाणी में विष और अमृत दोनों है सत्य, मधुर व हितकर वाणी अमृत होती है और मिथ्या, कटु व अहितकर वाणी विष होती है।
27. किसी की सेवा कर उसको गिनाना सेवा के महत्व व फल को कम करना है।
28. कायिका स्थिरता ध्यान-साधना का आवश्यक अंग है। उसे साध लो। तुम्हें प्रथम चरण की सफलता मिल जाएगी
29. तुम दूसरों को किस प्रकार प्रभावित करते हो, मुझे यह मत बताओ। मुझे तो यह बताओ तुमने अपने आपको प्रभावित करना सीखा या नहीं?
30. श्रद्धा का मतलब यह नहीं है कि तुम गलत बात पकड़ने के बाद उसे छोड़ो ही नहीं। श्रद्धा यह रखो कि मैं गलत लगने वाली बात को छोड़ भी सकता हूं।
31. मृत्यु का होना निश्चित है। पर कब होना प्राय: अनिश्चित है। इसलिए सतत् जागरूक रहते हुए भले काम करते रहो।
32. दूसरों को कष्ट पहुंचाना कदाचार है और दूसरों को पहुंचाना तथा कष्ट न पहुंचाने का संकल्प सदाचार है।
33. यदि अप्रमत्तता के साथ समय का सदुपयोग किया जाए तो ऐसी मंजिल नहीं, जहां तक पहुंचा न जा सके।
34. तुम कपड़ों को अच्छा रखने ओर बालों को संवारने में ही कला का प्रयोग करते हो या जीवन को संवारने में भी कौशल दिखाओगे?
35. परिश्रम सही दिशा में हो, सफल हो, इसके लिए किसी कार्य को करने से पूर्व मन में दो प्रश्न उठने चाहिए- ‘क्यों’ और ‘कैसे’?
36. समझदार व्यक्ति केवल भाग्य के भरोसे ही नहीं रहता और न ही केवल पुरूषार्थ को महत्व देता है। वह भाग्य और पुरूषार्थ दोनों को मानता है।
37. बीस जगह छाटे-छोटे गड्ढ़े खोदने की अपेक्षा कहीं एक गहरा गड्ढ़ा खोदो, वह कुआं होगा। तुम्हारी प्यास बुझाने वाला जल तुम्हें प्रदान कर सकेगा।
38. इस जीवन तक सीमित मत रहो। अगले जीवन पर भी ध्यान दो। इस जीवन में ऐसे काम मत करो, जिससे तुम्हारी अगली गति खराब हो जाए।
39. दुनिया में कितने लोग है, जो ठीक तरह बोल भी नहीं पाते, मूक है, अस्पष्ट भाषी है। तुम्हें अच्छी तरह बोलने की शक्ति प्राप्त हैं। इस शक्ति का दुरूपयोग मत करो
40. यदि आज के दिन तुमने सुकृत किया हैं तो आज तुम्हारे लिए सुफल, यदि दुष्कृत किया है तो आज तुम्हारे लिए दुष्फल और न सुकृत किया न दुष्कृत तो आज का दिन तुम्हारे लिए निष्फल है।
41. आपातपटु व परिणाम कटु कार्य करना कोई बुद्धिमत्ता नहीं। कार्य वह करो जो परिणाम पटु हो, भले आपात कटु क्यों न हो।
42. व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरूपयोग तो करे ही नहीं,शक्ति का अनुपयोग भी न हो, जितना हो सके वह अपनी शक्ति का सदुपयोग ही करे।
43. हर व्यक्ति के जीवन में अच्छाइयां और कमियां दोनो ही होती है। यदि कमियों का दूर करने और अच्छाइयों को विकसित करने का प्रयास होता है। तो जीवन अच्छा बन जाता है।
44. सही दिशा में शक्ति का नियोजन करने वाला व्यक्ति ही सफलता प्राप्त करता है।
45. जो व्यक्ति समय के मूल्य को पहचानते है, वे समय पर अपना कार्य करते हैं और सफलता अर्जित कर लेते हैं।
46. शरीर से मनुष्य होना विशेष बात है। किन्तु आचार से, व्यवहार विचार से मनुष्य होना, मानव में मानवता का होना विशेष बात होती है।
47. क्रोध करना बुरा है। पर अपनी सेवा करने वालो पर व गुरूजनों पर व्यर्थ क्रोध करना, निष्कारण क्रोधाकुल हो जाना ज्यादा बुरा है।
48. वर्षा आती है। उत्तप्त मनुष्य शांति का अनुभव करता है। इसी प्रकार समर्थ व्यक्ति जब असमथो पर करूणा और कृपा की वर्षा करते है। तो उन्हें भी शांति मिलती है।
49. इस नश्वर जीवन में हो सके तो किसी का भला करो, किन्तु किसी का बुरा मत करो।
50. तुम्हारा दिमाग कूड़ादान नहीं, प्रभु का पवित्रा मंदिर बना रहे। इसलिए उसमें जो कुछ भी मत डालो, अच्छी सामाग्री ही अर्पित करो।

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