विदेशी फूड आइटम की कस्टम विभाग करेगा रैंडम जांच

नई दिल्ली : भारत ने हर इंपॉर्टेड फूड कंसाइनमेंट की लैबरेटरी जांच का सिस्टम खत्म करने का फैसला किया है। आगे चलकर रैंडम और रिस्क के आधार पर कंसाइनमेंट की जांच होगी, जैसा दुनिया के दूसरे देशों में होता है। प्रधानमंत्री कार्यालय और कैबिनेट सेक्रेट्रिएट ने इस मामले में संबंधित डिपार्टमेंट्स और मंत्रालयों से बात की है।1411346837877_Image_galleryImage_Customers_are_buying_Groc
कस्टम डिपार्टमेंट के एक सीनियर ऑफिशल ने बताया, ‘हर कंसाइनमेंट की जांच में वक्त लगता था। इसे खत्म करने की जरूरत है और रिस्क बेस्ड जांच बेहतर होगी।’ उन्होंने बताया कि हेल्थ मिनिस्ट्री ने इस बारे में कानून मंत्रालय की राय मांगी है। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि पोर्ट्स पर कंसाइनमेंट की क्लियरेंस में देरी न हो। यह सरकार की ईज ऑफ डुइंग बिजनस की कोशिशों के भी मुताबिक है। पहले स्विस चॉकलेट्स और दुनिया के कई पॉप्युलर फूड ब्रैंड्स भारतीय बंदरगाहों पर कई दिनों तक फंसे रह चुके हैं।
इनडायरेक्ट टैक्स की सबसे बड़ी संस्था, सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज ऐंड कस्टम्स (सीबीईसी) भी चाहता है कि FSSAI, ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया और दूसरी एजेंसियों की जांच की समय सीमा तय की जाए। इससे इंडस्ट्री को पहले से पता होगा कि जांच में कितना वक्त लगेगा। अधिकारी ने बताया, ‘जांच में लगने वाले समय में कमी की जाएगी।’ डिपार्टमेंट्स से कहा गया है कि वे जांच में लगने वाले समय के अलावा और 12 घंटे का वक्त लें। इससे कार्गो क्लियरेंस का एक सिस्टम बनेगा। भारत में ऐसा कदम पहली बार उठाया जा रहा है। दरअसल, मोदी सरकार ईज ऑफ डुइंग बिजनस में देश की रैंकिंग सुधारना चाहती है और इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। वहीं, इंडस्ट्री 100 पर्सेंट फिजिकल टेस्टिंग को खत्म करने की भी मांग कर रही है।
इस बारे में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के डायरेक्टर जनरल और सीईओ अजय सहाय ने कहा, ‘फिजिकल वेरिफिकेशन रिस्क के आधार पर होना चाहिए। इससे बंदरगाहों पर कंसाइनमेंट क्लियरेंस में होने वाली बेवजह की देरी खत्म होगी।’ अभी पोर्ट्स पर फूड कंसाइनमेंट के क्लीयरेंस में 10-15 दिन लगते हैं। कुछ बंदरगाहों के पास तो जांच के लिए लैबरेटरी तक नहीं है। इससे कंसाइनमेंट क्लियर होने में और समय लगता है।
सीबीईसी ने नैशनल लेवल कस्टम क्लियरेंस फसिलिटेशन कमिटी और बंदरगाहों पर लोकल कमिटी भी बनाई है। इसके हेड कस्टम चीफ कमिश्नर होंगे। इसके मेंबर्स में संबंधित ऑर्गनाइजेशंस के लोग होंगे। क्लियरेंस के दौरान अगर कोई मसला सामने आता है तो उसे तुरंत दूर करना इन कमेटी का काम है। कस्टम कमिश्नर को हर हफ्ते रिव्यू मीटिंग करनी होगी। अगर क्लियरेंस में देरी होती है तो उन्हें संबंधित अथॉरिटीज को निर्देश देने का अधिकार होगा। वह इसे नैशनल लेवल की कमिटी के सामने भी उठा सकते हैं। नैशनल कमिटी के हेड रेवेन्यू सेक्रेटरी होंगे। वह भी ग्राउंड लेवल पर सिचुएशन का पता लगाने के लिए नियमित तौर पर मीटिंग करेंगे।

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