लुधियाना : केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट पेश करते वक्त रेडीमेड गारमेंट पर उत्पाद शुल्क लगाने का एलान कर दिया।
इससे हौजरी, निटवियर और हर तरह के रेडीमेड गारमेंट बनाने वाले उद्यमियों में उबाल है। डूटी की पेचीदगी को समझने और संघर्ष की रणनीति बनाने के लिए औद्योगिक संगठनों में बैठकों का दौर शुरू हो गया है। सेंट्रल एक्साइज के माहिर एवं वकील एनके थम्मण का कहना है कि बजट प्रावधानों के अनुसार एक हजार रुपये से अधिक के अधिकतम रिटेल मूल्य (एमआरपी) वाले गारमेंट पर उद्यमी को गारमेंट की कीमत के साठ फीसदी पर दो फीसदी डूटी देनी होगी।
यदि वह सेनवेट क्रेडिट लेता है तो डूटी साढ़े बारह फीसदी लगेगी। उद्यमियों को सेंट्रल एक्साइज का रजिस्ट्रेशन लेकर ही बिल काटना होगा। जो छोटे उद्यमी छोटे स्केल की डेढ़ करोड़ की छूट के दायरे में आते हैं उन पर डूटी का असर नहीं होगा।
चेंबर ऑफ अपैरल, निटवियर एंड टेक्सटाइल एसोसिएशन के प्रधान अजीत लाकड़ा का कहना है कि रेडीमेड गारमेंट पर उत्पाद शुल्क कतई बर्दाश्त नहीं है। इस पर औद्योगिक संगठनों से विचार-विमर्श करके संघर्ष किया जाएगा।
निटवियर एंड टेक्सटाइल क्लब के प्रधान विनोद थापर का कहना है कि इस फरमान का हर स्तर पर विरोध किया जाएगा। पहले से ही इंडस्ट्री ऑक्सीजन पर थी। राहत देने की बजाय मुसीबत में डाल दिया गया है।
निटवियर अपैरल मेन्यूफेक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ लुधियाना के प्रधान सुदर्शन जैन ने भी गारमेंट पर उत्पाद शुल्क लगाने की निंदा की है। जैन ने कहा कि इस की स्टडी करने के बाद ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
ओसवाल वूलेन मिल्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर संदीप जैन का कहना है कि मंदी से परेशान उद्योगों पर डूटी का बोझ सही नहीं है। इससे इंडस्ट्री की ग्रोथ पर असर होगा।
सौजन्य से- अमर उजाला