नई दिल्ली : इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट (आईजीआई) ड्रग्स तस्करी का ट्रांजिट प्वाइंट बनता जा रहा है। गत कुछ समय से बार्डर पर सुरक्षा एजेंसियों की सक्रियता के कारण विमान से ड्रग्स तस्करी का ट्रेंड खासा बढ़ा है। बड़ी संख्या में विदेशी व देश के तस्कर हवाई मार्ग से ड्रग्स तस्करी में लगे हुए हैं। पिछले सवा साल में यहां ड्रग्स तस्करी के एक दर्जन से ज्यादा मामले सामने आए। जिसमें 15 तस्करों को सीआईएसएफ ने नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के हवाले किया। आरोपियों से अब तक 6.73 करोड़ से ज्यादा कीमत के ड्रग्स भी जब्त किए गए।
एनसीबी अधिकारियों ने बताया कि मुख्यत: दो तरह के ड्रग्स होते हैं। हेरोइन व कोकीन को पौधे से प्राप्त द्रव्य अथवा अन्य हिस्से को परिष्कृत कर बनाया जाता है। जबकि एफेड्रीन व मैथाक्वोलोन का निर्माण प्रयोगशाला में होता है। इसे सिंथेटिक ड्रग्स के नाम से भी जाना जाता है। ड्रग्स रैकेट चलाने वाले हेरोइन व कोकीन अफगानिस्तान और यूरोपीय देशों से भारत में मंगाते हैं। जबकि सिंथेटिक ड्रग्स की भारत से बाहर के देशों में तस्करी की जाती है। एफेड्रीन का इस्तेमाल एनेस्थीसिया और मनोचिकित्सकीय दवाओं में होता है। विदेशों में भारी मांग के कारण तस्कर ड्रग्स बनाने वाली फैक्टरियों के कर्मचारियों से सांठ-गांठ कर अवैध रुप से ड्रग्स प्राप्त कर लेते हैं। म्यांमार, दुबई, मलेशिया व साउथ अफ्रीकी देशों में इसकी बड़ी मांग है। भारत से बाहर जाते ही इसकी कीमत चार गुणा तक ज्यादा हो जाती है।
नए तरीके में तस्कर पार्सल व सामान के डिब्बे के माध्यम से ड्रग्स की तस्करी कर रहे हैं। पार्सल व डिब्बे में एक तो कम मात्रा में ड्रग्स भेजा जा सकता है और पकड़े जाने की संभावना भी ज्यादा रहती है।
इसके कारण तस्कर हवाई मार्ग का प्रयोग करते हैं। कोई सूटकेस के अंदर (फाल्स कैविटी) छुपी जगह में तो कोई खिलौने इत्यादि में ड्रग्स छुपाकर लाता है।
हालांकि आईजीआई एयरपोर्ट पर तैनात सीआइएसएफ के जवानों को तस्कर की पहचान के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। क्या कहते हैं अधिकारी सीआईएसएफ प्रवक्ता हेमेंद्र सिंह ने बताया कि आईजीआई एयरपोर्ट पर जवानों को खास तरह की ‘प्रोफाइलिंग ट्रेनिंग’ दी गई है। प्रोफाइलिंग के तहत व्यक्ति का पहनावा, हाव-भाव व चलने-फिरने का तरीका इत्यादि देखकर ही जवान यह ताड़ लेते हैं कि वह तस्कर है।
सौजन्य से : दैनिक जागरण