यह पंक्तियाँ किसी कवि ने लिखी है जो इंसान को बहुत हिम्मत देती हैं। खास तौर पर भारतीय लोगों पर क्योंकि यहाँ का माहौल ही ऐसा है कि पता नहीं कब क्या हो जाये। हिंदुस्तान की ऊबड़-खाबड़ जिन्दगी और उबड़-खाबड़ पॉलिटिक्स में कब क्या झटका लग जाये कोई नहीं बता सकता। यहाँ के नेताओं की करनी और कथनी में बढ़ा अंतर है गरीब और आम आदमी के लिए तो यहाँ कोई स्कीम नहीं बनती है। सिर्फ उद्योगपतियों और काले धंधे वालो के लिए ही स्कीमें बनायी जाती हैं। आम आदमी को तो इन पंक्तियों के सहारे ही जीना पड़ता है। अखबार उठाओ चारों तरफ घोटालों की खबर पढ़ने को मिलेगी। बदमाश, चोर, लफंगे, जेबकतरे सड़कों पर सरेआम वारदात करते हैं और भाग जाते हैं। पुलिस का कोई डर नही, एक समय था जब सड़क पर एक बदमाश होता था तो दस बचाने वाले। आज सात बदमाश होते हैं और तीन बचाने वाले। वह भी डर के मरे कुछ कर नहीं सकते। लोगों की नियतें खराब हो चुकी है ईमानदार तथा हिम्मती लोग कम हो चुके हैं।
बेईमानों का राज चल रहा है हर आदमी दूसरे का पैसा मारने के चक्कर में रहता है। ईमानदारी का बिजनेस कम कम हो चुका है। इस सब का कसूर सरकार पर जाता है जो खुद ईमानदारी से काम नहीं करती तो दूसरे क्या करेंगे। पहले भी उद्योगपतियों की सरकार थी और आज भी उद्योगपतियों की सरकार है। अभी सरकार ने इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट पालिसी की घोषणा की है थोड़ा ही दिनों में पता चलेगा कि एक्सपोर्ट तो हुआ लेकिन सरकारी खजाने खाली हो गए दो-नंबरी काम करने वालों ने पालिसी का मिस-यूज़ करके अपने घर भर लिए हैं। अभी हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया कि जो माल एक्सपोर्ट किया वही माल इम्पोर्ट होकर वापस आ गया। दूसरे मामले में एक इनफॉर्मर ने बताया कि हैंडीक्राफ्ट के नाम पर पीतल के बर्तन एक्सपोर्ट हो रहे हैं, वह दुबई जाकर काट दिए जाते हैं और उन्हें स्क्रैप बना दिया जाता है और ब्लैकमनी वाइट हो जाती है। भारत में इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का कोई भी काम शुद्ध तरीके से नहीं होता है। सब कानून का सहारा लेकर आटा, नमक मिला कर काम करते हैं। अगर कोई ईमानदारी से काम करना भी चाहे तो वह सरकारी पचड़ों में इतना उलझेगा की कान पकड़ लेगा।
जहाँ सच न चले, वहां झूठ ही सही।
जहाँ हक़ न मिले, वहां लूट ही सही।।
इसी तरह का काम है हिन्दुस्तान में। क्या इस तरह के माहौल में हिन्दुस्तान तरक्की कर सकता है। इम्पोर्ट करने वाला मिट्टी के भाव माल बेचेगा और जो हिन्दुस्तान में ही माल बनाएगा वह महंगा बनेगा, महंगा बिकेगा। फिर कैसे सपना पूरा होगा? मेक इन इंडिया का।